Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 84
________________ ( ७७ ) अर्थ- हर्षमुनिजी ने आपद महाराजे पण आयुं नथी तेम श्रावको पण आप्युं नथी परंतु श्रेष्ठ पुरुषोए पण मान्य करवा योग्य भगवती सूत्रे या पद आपेलुंछे" - इस कपोलकल्पित लेख से महाराज का पद भगवतीसूत्र ने दिया लिखा है और जैनपत्र में प्रथम छपवाया था कि महाराज के पद में महाराज के मृतक संबंधी आए हुए काँधियो ने हर्षमुनिजी को स्थापन किये, इस प्रकार के अनुचित लेखों से अपनी कृतघ्नता पूर्वक महत्वता के लिये प्रशंसा दिखलाना कौन बुद्धिमान ठीक कहेगा ? अस्तु पृष्ठ ३७७ में हर्षमुनिजी ने अपनी प्रशंसा छपवाई है कि - ऊचुश्चान्योन्यमिलिता हर्षोवक्ति यथा श्रुतम् । न चान्यवक्तृवन्मिष्टं प्रजल्पति सुरोचकम् ॥ अर्थ — सर्वे मलीने परस्पर कहेवालाग्या के श्रीहर्षमुनिजी बरोबर शास्त्रप्रमाणे कछे, परंतु बीजा वक्ताओनी पेठे मीढुं मीटुं ने रुचिकर लागे एवं गमे त्यांथी लावीने कहेता नथी । यं स्वधर्ममर्मज्ञो मोहनर्षिरिवास्ति भोः । वचोऽस्य सत्यमस्माकं शिरोधार्यं प्रमात्वतः ॥ अर्थ - ( हर्षमुनि) पोताना धर्मना मर्मने मोहनलालजी महाराज नी पेठे जाणे छे अने एमनुं वचन प्रमाणवालु होवाथी आपणे माथे चढाव जोइए । सत्यं वक्ति मितं वक्ति वक्ति सूत्रानुसारतः । नो नः प्रतारयत्येष धर्मभीरुः सदाशयः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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