Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 87
________________ (80) अर्थ-अागम से विरुद्ध जो लिखाना हो वो मिथ्या दुस्कृत हो और इस भव तथा भवोभव में मेरे को श्रीजिनराज की वाणी प्रमाण हो // 4 // जयंतु ते महाभाग्या, मोहनाख्या मुनीश्वराः / शांता जितेन्द्रियाः श्रेष्ठा, वीरशासनद्योतकाः // 5 // अर्थ-श्रीवीरप्रभु के शासन की उन्नति करनेवाले अर्थात् सत्य उपदेशक तथा शांत और जितेन्द्रिय, अतिश्रेष्ठ, महाभाग्यशाली श्रीमोहनलालजी महाराज सदा जय करानेवाले हो // 1 // जयंतु दुर्जना येऽपि, भ्रष्टा द्वेष्याश्च मानिनः / यदि जगति ते न स्युःसतां दोषान् प्रलांति के // 6 // अर्थ-श्रद्धाहीन द्वेषी अभिमानी दुर्जन भी जयवंते रहो यदि वे लोग संसार में न होते तो सज्जनों के दोष ग्रहण कौन करता ? // 2 // नमः सिद्धादिराजाय, नमो गौतमस्वामिने ! नमः सज्जनवृंदाय, दुजनाय नमो नमः // 7 // अर्थ-गिरिराज श्रीसिद्धाचलजी महातीर्थ को नमस्कार हो, श्रीवीरतीर्थकर के प्रथम गणधर श्रीगौतमस्वामी को नमस्कार हो, सज्जनवृंद को नमस्कार हो और दुर्जनों को बार बार अमस्कार हो // 3 // इत्यांतमंगलम् / मनि,TAARBHATTARAIY अशा इति हर्षहृदयदर्पणस्य द्वितीयभागः समाप्तः श्रीर - 775 -19 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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