Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ ( ७६ ) प्रत्युत्तर प्रदान करेंगे सो परमात्मा जाने, परंतु महाशय यह अवश्य याद रक्खें कि "सत्यमेव जयति नानृतम् ।" अर्थात् सत्य ही जयको प्राप्त करता है, असत्य नहीं । वास्ते आपके शास्त्रविरुद्ध उत्सूत्र भाव वाले प्रत्युत्तर के लेखों का भी प्रत्युत्तर हर्षहृदय दर्पण के तीसरे भाग में प्रकाशित किये जायेंगे। किंबहुना इत्यलं विस्तरेण । ॥ अथप्रशस्ति ॥ गच्छे खरतरेऽभूवन् वाचंयमपुरंदराः । श्रीमन्मोहनलालाख्याः सत्योपदेशतत्पराः ॥ १॥ अर्थ - श्रीखरतरगच्छ में सदुपदेशतत्पर मुनिनायक श्री - मनमोहनलालजी महाराज हुए ।। १ ।। तेषामाज्ञापत्रेण स्व-समाचारिकृतादराः । शिष्या अभूवन् पन्यास श्री मद्यशोमुनीश्वराः ॥२॥ अर्थ - श्रीमोहनलाल जी महाराज का सदुपदेश रूप आज्ञापत्र के द्वारा शास्त्रसंमत ५० दिने पर्युषण आदि अपने खरतर - गच्छ की समाचारी अंगीकार करनेवाले शिष्य पन्यास श्रीमद्यशो - मुनि जी महाराज हुए ॥ २ ॥ तेषामाज्ञानुसारेण शास्त्रपाठप्रमाणतः । लिखितोऽयं मया ग्रंथो केशराभिदसाधुना ॥३॥ अर्थ - श्रीयशोमुनिजी महाराज की आज्ञा के अनुसार शास्त्रपाठों के प्रमाणों से यह ग्रंथ केशरमुनि ने लिखा ॥ ३ ॥ श्रागमाद्विरुद्धं यत्स्यात् मिथ्यादुस्कृतमस्तु तत् जिनवाणी प्रमाणा मे भवत्वऽव भवे भवे ॥ ४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87