Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 70
________________ वास्या या पूर्णिमा का क्षय होने से तपगच्छवाले तेरस तिथि में पाक्षिक प्रतिक्रमण या चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करते हैं, सो आगम-संमत नहीं है । क्योंकि उपर्युक्त गाथापाठ से स्पष्ट विदित होता है कि सूर्योदययुक्त चातुर्मासिक पानिक तिथियों में चातुर्मासिक पातिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करने के हैं, अन्य तेरस तिथि में नहीं । इसी लिये चतुर्दशी का क्षय हो तो आगम-संमत पूर्णिमा, अमावास्या में ; और अमावास्या पूर्णिमा का क्षय हो तो आचरणा संमत चतुर्दशी में पानिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृल करने उचित हैं । क्योंकि श्रीज्योतिष्करंड पयन्नादि ग्रंथों में लिखा है कि छठी सहिया न अट्ठमी, तेरसी सहिअं न पख्खि होइ । पडिवया सहिअं न कइभावि, इयं भणियं वीयरागेहिं ॥१॥ भावार्थ-अष्टमी का तय हो तो अष्टमी संबंधी नियमादि धर्मकृत्य सप्तमी में हो, छठ तिथि के साथ नहीं हो सकते हैं। इसी तरह चतुर्दशी का क्षय हो तो चतुर्दशी संबंधी नियमादि धर्मकृत्य तेरस तिथि में हो, परंतु अमावास्या या पूर्णिमा संबंधी पाक्षिक, चातुर्मासिक, प्रतिक्रमणादि कृत्य तेरस तिथि के साथ नहीं होते, वास्ते अमावास्या या पूर्णिमा में करे और अमावास्या पूर्णिमा का क्षय हो तो चतुर्दशी में करे । तेरस तिथि में चातुर्मासिक या पातिक प्रतिक्रमणादि कृत्य नहीं हो तथा एक्कम तिथि में भी नहीं हो, यह श्रीवीतराग तीर्थकर महाराजों ने कहा है । और अमावास्या या पूर्णिमा की वृद्धि होने से तपगच्छवाले स्वाभाविक पहिली अमावास्या वा पहिली पूर्णिमा में नातुर्मासिक, पाक्षिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करते हैं और चतुर्दशी पर्वतिथि को पानिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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