Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 75
________________ (६८) आते हैं । इससे ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने पर्युषण करने कदापि सिद्ध नहीं हो सकते हैं । क्योंकि श्रीदशवैकालिकसूत्र की नियुक्ति तथा बृहत् टीका में लिखा है कि ___ अइरित्त अहिगमासा, अहिगा संवच्छरा य कालंमि । टीका-अतिरिक्ता उचितकालात् समधिका अधिकमासका प्रतीताः अधिकाः संवत्सराश्च षष्ठयऽब्दाद्यऽपेक्षया कालइति कालचूड़ा । - अर्थ-इन उपर्युक्त नियुक्ति तथा टीकापाठों के वाक्यों के अनुकूल प्रथम भाद्रपद मास उचित काल में है इसलिये प्रथम भाद्रपद मास अधिक नहीं हो सकता है, किंतु १२ मासों का उचित काल के ऊपर अधिक १३ वाँ दूसरा भाद्रपद मास अधिक होता है और ६० वर्ष आदि की अपेक्षा से अधिक संवत्सर होते है । वास्ते दूसरा भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने उपर्युक्त सिद्धांतपाठों से विरुद्ध पर्युषण करके अधम कणेरवृक्ष की तरह तपगच्छवालों को फूलना उचित नहीं हैं, किंतु उपर्युक्त सिद्धांतपाठों के अनुकूल ५० दिने प्रथम भाद्रपद मास में पर्युषण करना संगत (युक्त) है। क्योंकि उपर्युक्त श्रीपर्युषण कल्प सूत्र पाठ में लिखा है कि पर्युषणपर्व किये विना ५० वें दिन की रात्रि को उल्लंघनी कल्पती नहीं है, यह साफ मना लिखा है । वास्ते ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमण केशलोचादि कृत्यविशिष्ट पर्युषण करना सर्वथा असंगत ( अयुक्त ) है, आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि___ अभिवढियंमि वीसा इति वचनं गृहिज्ञात मात्राऽपेक्षया, इत्यादि। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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