Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 73
________________ (६६ ) तद्द्वयसंभवे कस्मिन् क्रियते इति विचारे प्रथम अवगणय्य द्वितीये क्रियते। भवार्थ-जो ५० दिने भाद्रपद मास प्रतिवद्ध पर्युषण के प्रतिक्रमणादि कृत्य और ७० दिने कार्तिकमास प्रतिवद्ध कार्तिक चतुर्मासी के प्रतिक्रमणादि कृत्य करने के हैं वे तो दो भाद्रपद और दो कार्तिक होने पर किस मास में कितने दिने करने, इस विवार में स्वाभाविक प्रथम भाद्रपद मास को और स्वाविक प्रथम कार्तिक मास को गिनती में नहीं मानकर दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने पर्युषण पर्व के प्रतिक्रमणादि कृत्य करते हैं और १०० दिने दूसरे कार्तिक अधिकमास में चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करते हैं, यह आपके उक्त उपाध्यायों ने कौन से सूत्रादि पाठों के आधार से अपना मंतव्य दिखलाया है, याने दुसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करने तथा १०० दिने दूसरे कार्तिक अधिक मास में चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करने, यदि सूत्र-नियुक्ति-चूर्णि-टीकापाठों से संमत (संगत ) हो तो उन सिद्धांत पाठों को बतलाइये, अन्यथा उपर्युक्त सूत्र-नियुक्ति-चूर्णि टीकापाठों से विरुद्ध आपका यह उक्त कपोलकल्पित मंतव्य सत्य नहीं माना जायगा । आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि पश्य अचेतना वनस्पतयोऽधिकमासं नांगीकुर्वते येनाऽधिकमासं प्रथमं परित्यज्य द्वितीये एव मासे पुष्यंति यदुक्तं आवश्यक निर्युक्तौ-जइ फुल्ला कणिारया, चूअग अहिमासयंमि घुटमि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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