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( ५६ ) को ५० दिने पर्युषण करने की उपर्युक्त शास्त्रपाठों की आज्ञा का भंग करके गुजराती प्रथम भाद्र वदी १२ से पर्युषण प्रारंभ करके दूसरे भाद्रपद अधिक मास में सुदी ४ को ८० दिने पर्युषण करते हैं। यह मंतव्य पंचांगी के किस पाठों के आधार से लिखा है, उन सूत्र, नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य, टीका आदि पंचांगी के पाठों को बतलाइये ? अन्यथा उक्त मनःकल्पित मंतव्य को सिद्धांत-विरुद्ध समझ कर त्याग देना उचित है । क्योंकि उपर्युक्त सूत्र, नियुक्ति, चूर्णि, टीका आदि शास्त्रपाठों के आधार से जैन टिप्पने के अनुसार अभिवर्द्धित वर्ष में आषाढ़ पूर्णिमा से २० दिने श्रावण सुदी ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्ययुक्त पर्युषण, उसके स्थान में जैनटिप्पने के अभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार ५० दिने दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा प्रथम भाद्र सुदी ४ को ५० दिने पर्युषण करना संगत ( युक्त ) है, यह श्री वृद्ध पूर्वाचार्य महाराजो के वचन श्रीकल्पसूत्र को टीकाप्रो में आपके उक्त उपाध्यायों ने भी लिखे हैं । तथा ५० दिन के अंदर भी पर्युषण करने कल्पते हैं, परंतु पर्युषण किये विना ५० वें दिन की रात्रि को उल्लंघन करना कल्पता नहीं है, यह श्रीमूल कल्पसूत्रादि ग्रंथों में साफ मना लिखा है। वास्ते इस आज्ञा का भंग करके दूसरे भाद्रपद अधिकमास में सुदी ४ को ८० दिने पर्युषण करना सर्वथा असंगत है । अस्तु, आपके उक्त उपाध्यायों ने गुजराती प्रथम भाद्रपद मास को गिनती में अप्रमाण किया है तो बदी १२ से गुजराती प्रथम भाद्रपद मास में चार दिन जो आप लोग पर्युषण करते हैं वे गिनती में प्रमाण मानते हैं या नहीं ? और दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने पर्युषण करते हो तो दूसरे भाद्रपद सुदी ४ तक कोई ३५ उपवास करे, उसमें गुजराती प्रथम भाद्रपद मास संबंधी उपवास के ३० दिन
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