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(५८) मास में और वर्षा चतुर्मासी में ज्योतिषशास्त्रकारों ने निषेध किये हैं । अस्तु, आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि
“प्रास्तामऽन्योऽभिवर्द्धितो भाद्रपदवृद्धौ प्रथमो भाद्रपदोऽपि अप्रमाणमेव ।”
याने अन्य मास बढ़ाहुअा रहने दो, दूसरा भाद्रपद अधिकमास होने पर स्वाभाविक प्रथम भाद्रपद मास भी गिनती में नहीं । यह अनेक आगम-वचनों को बाधाकारी, प्रत्यक्ष-विरुद्ध, महामिथ्या वचन कौन सत्य मानेगा ? क्योंकि जैनागम श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति आदि सूत्र तथा टीका चूर्णि आदि ग्रंथों के उपर्युक्त पाठों में अर्थतः श्रीतीर्थंकर महाराजों ने, सूत्रतः श्रीगणधर महाराजों ने
और नियुक्ति चूर्णि टीकाकार आदि महाराजों ने अधिक मास को गिनती में माना है । वास्ते स्वाभाविक प्रथमभाद्रपद मास और दूसरा भाद्रपद अधिक मास गिनती में अवश्य प्रमाण किया जायगा तथा स्वाभाविक प्रथम भाद्रपद मास की सुदी ४ को ५० दिने श्रीपर्युषण पर्व करने संबंधी उपर्युक्त शास्त्रपाठों की आज्ञा का ' भंग नहीं किया जायगा। आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि__“यथा चतुर्दशीवृद्धौ प्रथमां चतुर्दशीमवग
णय्य द्वितीयायां चतुर्दश्यां पाक्षिककृत्यं क्रियते तथाऽत्राऽपि।"
याने जैसे चतुर्दशी पर्वतिथि की वृद्धि होने पर सूर्योदययुक्त ६० घड़ी की संपूर्ण पहिली चतुर्दशी पर्वतिथि को पापकृत्यों से विराध के अर्थात् पाक्षिक प्रतिक्रमण पौषधादि धर्मकृत्यों को निषेध कर दूसरी किंचित् चतुर्दशी को पाक्षिक प्रतिक्रमणादि
कृत्य करते हैं वैसे यहाँ पर भी स्वाभाविक प्रथम भाद्रपद सुदी ४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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