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( ५५ ) संवत्सर के २६ पन कहे हैं तो अभिनिवेषिक मिथ्यात्व के कदाग्रह से उत्सूत्रभाषी के विना अन्य कौन अभिवर्द्धित संवत्सर के १२ मास २४ पन कहेगा ? महाशय वल्लभविजयजी ! आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि
लोकेऽपि दीपालिकाऽक्षयतृतीयादिपर्वसु धन कलांतरादिषु च अधिकमासो न गण्यते ।
याने लोक में भी दिवाली अक्षयतृतीयादि पर्यों में और धनव्याजादि में अधिकमास नहीं गिनते हैं। इससे आपके मंतव्य की सिद्धि नहीं हो सकती है । क्योंकि अधिकमास को श्रीतीर्थकर गणधर आचार्य महाराजों ने गिनती में माना है तथापि आप यदि अधिक मास को गिनती में नहीं मानते हैं तो आप लोग दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने पर्युषण पर्व और दूसरे कार्तिक अधिकमास में १०० दिने चतुर्मासी कृत्य क्यों करते हो ? तथा उन दूसरे अधिकमासों को गिनती में क्यों मानते हो ? देखिये श्रीबृहत्कल्पचूर्णिकार महाराज ने लिखा है कि__ एत्थ अधिमासगो चेव मास गणिजति सो वीसाए समं वीसतिरातो भएणति चेव ।
अर्थ-(एत्थ) याने अभिवर्द्धित वर्ष में जैनटिप्पणे के अनुसार पौष और आषाढ़ अधिकमासं निश्चय गिनती में लिया जाता है, वह अधिकमास वीस रात्रि के साथ होने से २० वीस रात्रि याने श्रीनियुक्तिकार महाराज ने-"अभिवढियंमि २० वीसा इयरेसु २० सवीसइ १ मासो।" इस वाक्य से चंद्रवर्ष में ५० दिने और अभिवर्द्धित वर्ष में आषाढ़ पूर्णिमा से २० वीं रात्रि श्रावणसुदी ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि
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