Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 38
________________ ( ३१ ) सहित एक मास याने पचासवें दिन भाद्र सुदी ५मी पर्व तिथि को थी सो श्रीकालिकाचार्य महाराज के आदेश से चौथ अपर्वतिथि में भी लोक प्रसिद्ध करना और जो अभिवर्द्धित वर्ष में भाषाढ़ पूर्णिमा से वीस दिन वीतने से श्रावण सुदी ५ को गृहिज्ञात याने सांवत्सरिक कृत्ययुक्त पर्युषण पर्व करने की शास्त्र की आज्ञा है सो जैन सिद्धांत टिप्पने के अनुसार है क्योंकि जैनटिप्पने में पाँच वर्ष का एक युग के मध्य भाग में पौष मास और युग के अंत में आषाढ़ मास ही बढ़ता है अन्य श्रावगादि मास नहीं बढ़ते । उन जैन टिप्पनों का इस समय में सम्यग् ज्ञान नहीं है याने जैन टिप्पने के अनुसार वर्षाचतुर्मासी के बाहर पौष और आषाढ़ मास की वृद्धि होती थी वास्ते २० दिने श्रावण सुदी ४ को पर्युषण करते थे । उस जैन टिप्पने का सम्यग् ज्ञान इस समय नहीं होने से लौकिक टिप्पने के अनुसार वर्षाचतुर्मासी के अंदर श्रावण आदि मासों की वृद्धि होती है इसी लिये दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा प्रथम भाद्र सुदी ४ को २० दिन सहित १ मास याने ५० दिने पर्युषण करने निश्चय संगत ( आगम संमत ) है यह श्रीवृद्ध प्राचीन प्राचार्यों का वचन ( उपर्युक्त पाठ ) लिखा हुआ है - पर्युषण के अनन्तर कालावग्रह याने रहने की स्थिति जघन्य से चंद्रसम्वत्सर में भाद्र शित पंचमी से यावत् कार्त्तिक चतुर्मासी पर्यंत ७० दिन प्रमाण है | उत्कर्ष से वर्षा योग्य क्षेत्र के प्रभाव से आषाढ़ मास कल्प के साथ वृष्टि के सद्भाव से मार्गशीर्ष मास के साथ ६ मास का है । अभिवर्द्धित वर्ष में प्राचीन काल की २० दिन की पर्युषणा से १०० दिन शेष रहते थे और अभी भी जैनटिप्पने के अभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार दूसरे श्रावमा में बा प्रथम भाद्रपद में ५० दिने पर्युषण करने से चतुर्मासी के १०० दिन पूर्व काल की तरह शेष रहते हैं वह मध्यम काला ग्रह है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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