Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 43
________________ वृद्धिवाले लौकिक टिप्पने के अनुसार २० दिन सहित १ मास अर्थात् दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा प्रथम भाद्रपद सुदी४ को ५० दिने पर्युषणा करना युक्त है__ श्रीविनयविजयजी ने यही अधिकार श्रीकल्पसूत्र सुबोधिका टीका में लिखा है कि__केवलं गृहिज्ञाता तु सा यत् अभिवड़ितवर्षे चातुमासिकदिनादारभ्य विंशत्या दिनै यमत्र स्थितास्म इति पृच्छतां गृहस्थानां पुरोवदन्ति तदपि जैनटिप्पन काऽनुसारेण यतस्तत्र युगमध्ये पौषो युगान्ते चाषाढ़ एव वर्दते नान्ये मासास्तट्टिप्पनकं तु अधुना सम्यग् न ज्ञायते अतः पंचाशतैव दिनैः पर्युषणा युक्तेति वृद्धाः। भावार्थ-अभिवर्द्धितवर्ष में आषाढ़ चातुर्मासिक दिन से २० दिने श्रावण सुदी ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्य विशिष्ट पर्युषण करें और पूछते हुए गृहस्थों के समक्ष साधु कहे कि हम यहाँ पर १०० दिन शेष स्थित हुए हैं वह पर्युषण जैनटिप्पने के अनुसार है क्योंकि जैनटिप्पने में युगके मध्यभाग में पौष मास बढ़ता है और युग के अंतमें आषाढ़ मास ही बढ़ता है अन्य श्रावणादि दूसरे मास नहीं बढ़ते हैं वह जैनटिप्पना वर्तमान काल में सम्यक् प्रकार से जानने में नहीं आता है इसी लिये लौकिक टिप्पने के अनुसार दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा प्रथम भाद्रसुदी ४ को ५० दिने श्रीपर्युषण करना युक्त है । इस प्रकार श्रीप्राचीन वृद्धाचार्यों का कथन है। महाशय ! बल्लभविजयजी ! श्रावण या भाद्रपद मासकी वृद्धि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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