Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 48
________________ (४१) चंद्रसंवत्सर संबंधी श्रीसमवायांगसूत्र के पाठ को अभिवर्द्धित वष संबंधी पर्युषण के स्थान में योजना करके उपर्युक्त अपनी मनमानी कपोलकल्पना दिखाते हो सो तो श्रीसमवायांगसूत्रपाठ से प्रत्यक्ष विरुद्ध है । तथाहि तत्पाठ समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराइ मासे वइकंते सत्तरिएहिं राइदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ । देखिये, इस पाठ में उपर्युक्त आपकी कपोलकल्पना का गंध भी नहीं है, क्योंकि यह पाठ अधिकमास नहीं होने से चन्द्रसंवत्सर के लिये केवल इतना ही विदित करता है कि श्रमण भगवान् महावीर प्रभु वर्षाकाल के २० रात्रिसहित १ मास वीतने पर और ७० दिन रात्रि शेष रहते वर्षावास का पर्युषण करते थे । यह कथन अभिवर्द्धित वर्ष संबंधी नहीं है किन्तु चन्द्रसंवत्सर संबंधी है । सो उपर्युक्त श्रीनिशीथचूर्णि आदि आगमपाठों से स्पष्ट विदित होता है । यथा अभिवढिय वरिसे वीसतिरातेगते गिहिणातं करेंति तिसु चंदवरिसेसु सवीसतिराते मासे गते गिहिणतं करेंति इत्यादि । अभिवति वर्ष में जैनटिप्पने के अनुसार २० दिने गृहिज्ञात पर्युषण है सो जैनटिप्पने के अभाव से लौकिक टिप्पनों के अनुसार पंचाशतैवदिनैः पर्युषणासंगतेति वृद्धाः ५० दिने पर्युषण करना प्राचीनकाल के वृद्ध आचार्यों ने संगत कहा है, शेष १०० दिन पूर्ववत् रहते हैं । और तीन चन्द्रवर्षों में २० रात्रिसहित १ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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