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(५०) रात्रि का पक्ष होता है तो भी १५ दिन रात्रि बोलते हैं सो तो"गोयमा ! एगमेगस्स पख्खस्स पन्नरस्स दिवसा पन्नता इत्यादि" श्रीजंबुद्वीपप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्रवचन से संमत है तथा लौकिक टिप्पने में किसी पन में एक या दो तिथि घट जाने से १३ या १४ दिनरात्रि होती है और किसी पन में एक तिथि अधिक होने से १६ दिनरात्रि होती है । इससे अभिवर्द्धित वर्ष के १३ मास २६ पक्ष के १२ मास २४ पक्ष इत्यादि नहीं हो सकते हैं । इसी तरह १०० दिनके ७० दिन या ८० दिनके ५० दिन कदापि नहीं हो सकते हैं। देखिये, श्रावण वा भाद्रपदमास की वृद्धि होने पर आपने आषाढ़चतुर्मासी प्रतिक्रमण के बाद ५ पाक्षिक प्रतिक्रमण अवश्य किये । उनमें एक एक पक्ष के पन्द्रह पन्द्रह रात्रिदिन बोले हैं, तो इस हिसाब से पाँच पक्ष के ७५ दिन हुए। उसके अनंतर
आप पाँचवें दिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण पर्युषण करते हैं । इस लिये कुल ८० दिन आपही के मुख से सिद्ध हो चुके, तथापि अपने ही मुख से आप असत्य बोलते हैं कि हम तो ५० दिने पर्युषण करने की शास्त्र की आज्ञा पालन करते हैं । छिःछिः छिः ! इस प्रकार कपटयुक्त मिथ्याभाषण साधु अथवा श्रावकों के लिये इस भव तथा परभव में सर्वथा हानिकारक है । और भी देखिये कि सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के अनन्तर आप लोगों ने १० वें दिन भाद्रपद सुदी चतुर्दशी को पाक्षिक प्रतिक्रमण किया, उसके अनंतर आश्विन वा कार्तिक मास की वृद्धि होने पर ६ पाक्षिक प्रतिक्रमण आप लोगों ने किये, उसमें एक एक पत्न के पन्द्रह पन्द्रह रात्रिदिन का अभ्युठिया आपने खमाया। इस हिसाब से आपही के मुख से १०० दिन स्पष्ट सिद्ध हो चुके । याने १०० दिने कार्तिक चतुर्मासी कृत्य करते हो तथापि ७० दिने चतुर्मासी प्रतिक्रमण विहार श्रादि कृत्य करते हैं। यह आप लोगों का कथन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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