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( ३७ ) होने से उपर्युक्त पाठों से सर्वथा विरुद्ध ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिक मास की सुदी ४ को ८० दिने आप अयुक्त पर्युषण करते हैं क्योंकि लौकिक टिप्पने के अनुसार आश्विन मास की वृद्धि होती है तो आप लोग भी भाद्रसुदी ४ को ५० वें दिन सांवत्सरिक कृत्य युक्त पर्युषण करते हैं उसके बाद १०० दिन शेष उसी क्षेत्र में आप रहकर कार्तिकसुदी १४ को प्रतिक्रमणादि कृत्य करके पूनम या एक्कम को विहार करते हैं तथापि आप के उक्त उपाध्यायों ने-- ___ आश्विनवृद्धौ चातुर्मासिककृत्यमाश्विनसितचतुदश्यां कर्त्तव्यं स्यात् । ___ अर्थात् आश्विनमास की वृद्धि होने पर चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य आश्विन सुदी १४ को करना होगा यह किस पंचांगीपाठ के आधार से लिखा है ? देखिये श्रीनिशीथचूर्णि आदि ग्रंथों में लिखा है कि
वरिसारत्तं एग्गखेत्ते अत्थिता कत्तियचाउम्मासिय पडिक्कमिय पड़िवयाए अवस्स णिग्गंतव्वं ।
याने वर्षाकाल में साधु एक क्षेत्र में रहकर कार्तिक चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करके (पडिक्या) एक्कम को अवश्य विहार करना । आपके उक्त उपाध्यायों ने
कार्तिकसितचतुर्दश्यां करणे तु दिनानां शतापत्या समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराएमासे वइकंते सरारिराइदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ इति समवायांगवचनबाधा स्यात् ।
अर्थात् कार्तिक सुदी १४ को चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि
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