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( ३८ ) कृत्य करने में १०० दिन हो जाने से थीवीर प्रभु ५० दिने पर्युषण करने के बाद ७० दिन शेष रहते थे इस समवायांग वचन को बाधा होगी यह व्यर्थ प्रलाप लिखा है क्योंकि यदि ऐसाही एकांत से मानते हो तो १०० दिने दूसरे कार्तिक अधिक मास की सुदी १४ को कार्तिक चतुर्मासी प्रतिक्रमणादि कृत्य करने का मिथ्या कदाग्रह त्यागकर ७० दिने स्वाभाविक प्रथम कार्तिक सुदी १४ को कार्तिक चतुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करके दूसरे दिन विहार करना, यह मंतव्य आप लोग क्यों नहीं मानते हो ? प्रिय मित्र ! वलभ विजय जी ! याद रखना ८० दिने पर्युषण करने से उपर्युक्त शास्त्रवचनों को बाधा होती है इसीलिये पर्युषण किये बिना ५०वें दिन की रात्री उल्लंघनी कल्पती नहीं है, यह श्रीपर्युषणकलसूत्रादि में साफ मना लिखी है । वास्ते इस आज्ञा का भंग क्यों करते हो ? और किस वचन को वाधा आती थी सो श्रीकालिकानार्य महाराज ने मास वृद्धि के प्रभाव से चंद्रवर्ष में ७१ दिन शेष रहते ४६ दिने चौथ को पर्युषण किये ?
देखिये जैनटिप्पने के अभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार श्रावण या भाद्रपद वा आश्विन मास की वृद्धि होने से ५० दिने पर्युषण करने के बाद १०० दिन शेष रहते हैं तथा कार्तिक
आदि अन्यमासों की वृद्धि होती है तो ५० दिने पर्युषण करने के बाद ७० दिन शेष रहते हैं इससे ७० दिन शेष रहने संबंधी श्रीसमवायांगवाक्य को बाधा नहीं होती है क्योंकि प्रथम जैनटिप्पने के अनुसार पर्युपण तथा उस क्षेत्र में साधु को शेष दिन रहने संबंधी कालावग्रह श्रीनियुक्तिकार और श्रीबृहत्कल्पसूत्र चूर्णिकार आदि महाराजों ने लिखा है कि-- __ इय सत्तरिजहण्णा। असीइणउइंदसुत्तरसयं च॥
जइ वासमग्गसिरे । दसराया तिगिण उक्कोसा ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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