Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 36
________________ ( २६ ) तं करोंत इयरेसु तीसु चंदवरिसेसु सवीसति मास इत्यर्थः ॥ . भावार्थ-अभिवर्द्धित वर्ष में आषाढ़ पूर्णिमा से २० रात्रि व्यतीत होने पर श्रावण सुदी ५ को गृहिज्ञात पर्युषण करे और तीन चन्द्रसंवत्सरों में २० रात्रि सहित १ मास व्यतीत होने पर भाद्र सुदी ५ को गृहिज्ञात पर्युषण पर्व करे जिस वर्ष में अधिक मास आ पड़ा हो उसको अभिवर्द्धित वर्ष कहते हैं और जिस वर्ष में अधिक मास न आ पड़ा हो उसको चन्द्रवर्ष कहते हैं। वह अधिक मास युग के अंत में और युग के मध्य भाग में होता है यदि युग के अंत में हो तो निश्चय दो आषाढ़ मास होते हैं और युग के मध्य भाग में हो तो निश्चय दो पौष मास होते हैं । शिष्य पूछता है किस कारण से अभिवर्द्धित वर्ष में २० वें दिन की श्रावण सुदी ५ की रात्रि को गृहिज्ञात पर्युषण है और चन्द्र संवत्सर में २० रात्रि सहित १ मास याने ५० वें दिन की भाद्रसुदी ५ की रात्रि को गृहिज्ञात पर्युषण है ? उत्तर-यत अभिवर्द्धित वर्ष में ग्रीष्म ऋतु में वह एक अधिक मास अतिक्रांत हो जाता है इसीलिये वीस दिन पर्यंत अनिश्चित याने गृहिअज्ञात पर्युषण है और वीसवें दिन श्रावण सुदी पंचमी को गृहिज्ञात पर्युषण करे और तीन चंद्रवर्षों में वीस रात्रि सहित एक मास पर्यंत अनिश्चित याने गृहिअज्ञात पर्युषण है और पचासवें दिन भाद्र सुदी पंचमी को गृहिज्ञात पर्युषण करे । इससे उक्त उपाध्यायों ने अभिवर्द्धित वर्ष में जैनटिप्पने के अनुसार वीस दिने श्रावण सुदी पंचमी की गृहिज्ञात पर्युषणा को गृहिज्ञातमात्रा लिखी है सो मान्य नहीं किंतु गृहिज्ञात पर्युषण मान्य है उस गृहिज्ञात पर्युषण में सांवत्सरिक पंच कृत्य करने के उक्त उपाध्यायों ने लिखे हैं सो गक है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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