Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 34
________________ (२७) भावार्थ-उपर्युक्त सांवत्सरिक कृत्ययुक्त गृहिज्ञातपयुषण चंद्रसंवत्सर में ५० दिने भाद्र सुदी पंचमी पर्व तिथि में थी सो श्रीकालकाचार्य महाराज की आज्ञा से चौथ अपर्व तिथि में भी लोक प्रसिद्ध करनी और दूसरी सांवत्सरिक कृत्ययुक्त गृहिज्ञात पर्युषण अभिवर्द्धित वर्ष में २० दिने श्रावण सुदी ५ को करें १०० दिन शेष स्थित हुए कहे वह पर्युषण जैन-टिप्पने के अनुसार है क्योंकि जैनटिप्पने में पांच वर्ष का एक युग के मध्य भाग में पौष मास और युग के अंत में आषाढ़ मास ही बढ़ता है अन्य श्रावणादि मास नहीं बढ़ते । उन जैनटिप्पनों का इस समय में सम्यग् ज्ञान नहीं है याने जैनटिप्पने के अनुसार वर्षाचतुर्मासी के बाहर पौष और आषाढ़ मास की वृद्धि होती थी, वास्ते २० दिने श्रावण सुदी ५-४ को पर्युषण करते थे उस जैन-टिप्पने का ज्ञान के प्रभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार वर्षाचतुर्मासी के अंदर श्रावण आदि मासों की वृद्धि होती है इसीलिये दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा प्रथम भाद्र सुदी ४ को ५० दिने पर्युषण करने निश्चय संगत हैं ऐसा श्रीवृद्ध प्राचीन आचार्य महाराजों का कथन है महाशय वल्लभविजयजी से सादर निवेदन यह है कि सूत्र नियुक्ति टीका भाष्य चूर्णिरूप पंचांगी में कहीं भी ऐसा खुलासा पाठ आप बता देवें कि-अभिवर्द्धित वर्ष में दो श्रावण होने से ८० दिने भाद्र सुदी ४ को और दो भाद्रपद होने से २ मास २० दिने याने दूसरे भाद्रपद अधिक मास की सुदी ४ को ८० दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमण १, केशलुंचन २, अष्टमतप ३, चैत्यपरिपाटी ४, और सर्वसंघ के साथ ५ क्षामणाख्य वार्षिक पर्युषण पर्व करना संगत है तो आपका उपकार मानेंगे, लेकिन महात्माजी ! आप स्मरमा रखियेगा कि अन्य गछ के तथा तुमारे गच्छ के पहिले स . .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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