Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 32
________________ ( २५ ) समय में जैन-सिद्धांत टिप्पने का सम्यग् ज्ञान नहीं है इसी लिये लौकिक टिप्पने के अनुसार ५० दिने दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा प्रथम भाद्र सुदी ४ को पर्युषण करने संगत हैं इसी लिये वृद्ध पूर्वाचार्य कल्पसूत्रादि आगम उद्धारकर्ता श्रीदेवर्दिगणितमाश्रमणजी महाराज ने श्रीकल्पसूत्र में ५० वें दिन की रात्रि को पर्युषण किये विना उल्लंघनी कल्पे नहीं यह साफ मना लिखा है तपगच्छ के श्रीधर्मसागरजी, जयविजयजी, विनयविजयजी कृत कल्पसूत्र की टीकाओं में लिखा है कि___इह हि पर्युषणा द्विविधा गृहिज्ञाता गृह्यऽज्ञात भेदात् तत्र गृहिणामऽज्ञाता यस्यां वर्षायोग्य पीठ फलकादौ प्राप्ते कल्पोक्त द्रव्य क्षेत्र काल भाव स्थापना क्रियते सा चाषाढ़पूर्णिमायां योग्य क्षेत्राभावे तु पंच पंच दिन वृद्धया दशपर्वतिथि क्रमेण यावत् भाद्रपद सितपंचमी मेवेति गृहिज्ञाता तु द्विधा सांवत्सरिक कृत्य विशिष्टा गृहिज्ञातमात्रा च तत्र सांवत्सरिक कृत्यानि—सांवत्सरप्रतिक्रांति १ लुचनं २ चाष्टमं तपः ३ सर्हिद्भक्तिपूजा च ४ संघस्य क्षामणं मिथः ५॥ भावाथ-इहां पर्युषणा दो प्रकार की हैं १ गृहिज्ञाता और २ गृहिअज्ञाता । इनमें गृहिअज्ञाता पर्युषणा वह है कि जिसमें वर्षा काल के योग्य पीठ फलकादि वस्तु प्राप्त हुए कल्प में कही हुई द्रव्य से क्षेत्र से काल से भाव से स्थापना की जाती है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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