Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 31
________________ ( २४ ) मासात् परतो नाऽतिक्रमयितुं कल्पते यद्येतावत्कालेऽपि गते वर्षायोग्यक्षेत्रं न लभ्यते ततो वृक्षमूलेऽपि पर्युषितव्यं । भावार्थ- आषाढ़ पूर्णिमा को स्थित हुए साधु पाँच दिन में चतुर्मासी के योग्य संस्तारक डगल आदि वस्तुओं को ग्रहण करे रात्रि में श्रीकल्पसूत्र को कथन करे तो श्रावण बदी ५ को गृहिअज्ञात पर्युषण करे अथ आषाढ़ पूर्णिमा को योग्य क्षेत्र न मिला तो उपर्युक्त रीति से पाँच रात्रियों में वर्षावास के योग्य उपधी को ग्रहण करके और श्रीकल्पसूत्र को बाँच कर श्रावण वदी १० दशमी को गृहिअज्ञात पर्युषण करे इस तरह कारण योगे पाँच पाँच रात्रि दिनों के पंचक पंचक वृद्धि से यावत् २० रात्रि महित एक मास पूर्ण हो वहाँ रहना अथवा वह साधु आषाढ़ शुक्ल १० मी को चतुर्मासी योग्यक्षेत्र में स्थित हुए हो तो उनको पाँच रात्रि करके डगलादि ग्रहण करने पर और श्रीकल्पमूत्र कथन करने पर आषाढ़ पूर्णिमा को गृहिअज्ञात पर्युषण होता है यह उत्सर्ग मार्ग है । इसके उपरांत काल में पर्युषण के निमित्त स्थित हुए साधुओं का सभी अपवाद मार्ग है। अपवाद. मार्ग में भी २० वीस रात्रि सहित एक माम अर्थात् ५० वें दिन की रात्रि को पर्युषण किये बिना उल्लंघन करना नहीं कल्पता है यदि उपर्युक्त काल भी वीत गया हो और वर्षा योग्य क्षेत्र न मिला तो वृक्ष के मूल में भी रह कर चन्द्रसम्वत्सर में २० रात्रि सहित एक मास याने ५० दिने गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्ययुक्त पर्युपण करें और जैनटिप्पने के अनुसार अभिवर्द्धित वर्ष में २० दिने श्रावण सुदी ५ को गृहिज्ञात याने सांवत्सरिक कृत्ययुक्त पर्युषण करें परंतु इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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