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[प्रश्न ] श्रीमोहनचरित्र के पृष्ठ ४१४ में हर्षमुनि जी ने छपवाया है कि
" गच्छांतरमप्यंगी कुर्वन्नो लिप्यतेदोषैः ॥ ४५ ॥
अन्य गच्छनी समाचारी [ याने १३ त्रयोदशी तिथि में पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमण और ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिक मास में ८० दिने पर्युषण पर्व इत्यादि तपगच्छ की समाचारी ] अंगीकार करवी पड़े परंतु जे मध्यस्थ रहे अर्थात् पक्षपात करे नहीं तो तेने दोष लागतो नथी । ४५ । यह कथन सत्य लिखा है कि असत्य ?
[उत्तर] दोष लागतो नथी यह कथन सिद्धांत विरुद्ध पक्षपात के कदाग्रह से असत्य लिखा है क्योंकि हर्षमुनि जी ने [गच्छांतर मंगीकुरुते स नो साधुः । ४२ ।] इस वाक्य से साधु नहीं यह प्रथम ही बड़ा दोष लिख दिखलाया है और [ पक्षपात करे नहीं तो तेने दोष लागतो नथी ] इस वाक्य से हर्षमुनि जी आदि पक्षपात करे तो दोष अवश्य लगे यह बात भी सिद्ध होती है— देखिये कि - हर्षमुनि जी आदि को सिद्धांत विरुद्ध ८० दिने पर्युषण यदि तपगच्छ की समाचारी करने में किसी प्रकार से पक्षपात नहीं होता तो सिद्धांत संमत ५० दिने पर्युषण आदि खरतरगच्छ की समाचारी अंगीकार करने में गुरु श्री मोहनलाल जी महाराज की आज्ञा का भंग या लोप नहीं करते इसी लिये श्री गुरु आज्ञा तथा शास्त्र आज्ञा के प्रतिकूल ८० दिने पर्युषण आदि पगच्छ की समाचारी के पक्षपात से हर्षमुनि जी आदि दोष के भागी अवश्य होते हैं वास्ते उस पक्षपात को त्याग कर शास्त्र संमत खरतरगच्छ की समाचारी अंगीकार करना उचित है क्योंकि -
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