Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 16
________________ मंतव्य में पक्षपात नहीं है यह उचित मंतव्य लिख बतलाया है और हर्षमुनि जी ने तो श्रीगुरु महाराज की आज्ञा से शास्त्रानुकूल समाचारी करने कराने वालों की साधु नहिं इत्यादि झूठी निंदा और शास्त्र तथा गुरु आज्ञा प्रतिकूल समाचारी करने वालों की दोष लागतो नथी इत्यादि असत्य प्रशंसा और इस प्रकार की निंदादि अंतःकरण की कुटिलता से नरक के सेवक और भक्तों को दुर्जन तथा आप निंदा के पात्र यह सर्व अनुचित मंतव्य छपवाया है । अस्तु, परंतु स्वपरहित के लिये शास्त्र पाठों के अनुसार तथा श्रीगुरु महाराज के पत्रों के अनुसार सत्यासत्य मंतव्य दिखलाने वालों को निंदा आदि दोषापत्ति नहीं आ सकती है किंतु शास्त्रसंमत स्वगच्छ समाचारी श्री गुरु महाराज की आज्ञा से नहीं करें याने श्री गुरु महाराज का आज्ञा (वचन) को लोपे वह दोष का भागी होता है-प्रमाण भीमसिंह मांणक ने छपाये हुए तीसरे भाग में यथाछट्टम दसम दुवालसेहि, मासद्धमासखमणेहिं ॥ अकरंतो गुरुवयणं, अणंत संसारियो भणियो ॥१॥ अर्थ छठ अठम दशम द्वादशम मास अर्द्धमास खमण करके उग्र तपस्या शिष्य करता है परंतु श्री गुरु महाराज के वचन (आज्ञा) को नहीं करें याने गुरु की आज्ञा लोपे वह अनंत संसारी होता है इसीलिये श्रीगुरु महाराज की आज्ञा तथा शास्त्र की आज्ञा के अनुसार स्वगच्छ समाचारी करने कराने और बताने वाले गुरु शिष्य प्रशिष्यादि को कुछ भी दोषापत्ति नहीं आती हैं तथापि हर्षमुनि जी ने श्रीमोहनचरित्र के उक्त पृष्ठ में द्वेषभाव के अत्यंत निंदा के आक्षेप वचन जो छपवाये हैं सो अनुचित हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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