Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 15
________________ ( ८ ) में आए और अच्छे सत्कार के लिये तपगच्छ की समाचारी गुरु आज्ञा को लोप करके करते हैं तो आपके ही उक्त लेख से संशय होता है कि तुम साधु हो या नहीं । [प्रश्न ] हर्षमुनिजी ने श्री मोहनचरित्र के पृष्ठ ४१४ मेंगच्छोsयकं मदीयो इत्यादि भिनत्ति संघ स नो साधुः । ४१ । मारो गच्छ इत्यादि आग्रह थी जे संघमां भेद पाड़ेळे ते साधु नहिं ॥ ४१ ॥ गच्छांतर मंगीकुरुते स नो साधुः ॥ ४२ ॥ मारो सत्कार सारो थशे एम धारी जे बीजा गच्छमां जायछे ते साधु नहिं । यह सर्वथा अनुचित निंदा छपवा कर फिर नीचे उसी पृष्ठ में छपवाया है कि परकीयगच्छकुत्सा करणेनात्मीयगच्छपरिपुष्टिः । श्रद्धाश्चयेऽत्रतेषां मय्यनुरक्तिर्भवेत्सदास्थाम्नी ४३ ॥ इत्यांतर कौटिल्या, दभिभूतो निरयसेवको भवति । पूज्योऽपि दुर्जनानां, निंद्यः सज्ज्ञानगोष्ठीषु ॥ ४४ ॥ " अर्थ - बीजाना गच्छनी निंदाकरवाथी मारा गच्छनी पुष्टि थशे अने आगच्छना श्रावकोनो पण मारा ऊपर स्थिर प्रेम थशे एव अंत:करणानी कुटिलता वालो नरकने सेवनास्थाय छे अर्थात् नरकमां जायछे अने जो के दुर्जनो ते ने पूजे छे तो पण सत्पुरुषोनी ज्ञानगोष्टीमां तो ते निंदाने पात्र थायछे – ४३ । ४४ । हर्षमुनिजी ने अपना यह उक्त मंतव्य उचित छपवाया है कि अनुचित ? [उत्तर] अनुचित, क्योंकि श्रीमोहनलाल जी महाराज अपने हस्ताक्षर के प्रथम पत्र तथा दूसरे पत्र में सिद्धांत संमत स्वखरतरगच्छ समाचारी मंतव्य में अपना पक्षपात दिखला कर ८० दिने सिद्धांत - विरुद्ध तपगच्छ की पर्युषण समाचारी और तिथि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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