Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 23
________________ ( १६ ) अतः श्रीजिनवाक्येषु वः श्रद्धा चेद्यदिस्फुटा। गच्छे कदाग्रहं त्यक्त्वा गृह्यतां भगवद्वचः॥४॥ अर्थ-इस लिये आप लोगों की यदि श्रीजिनेश्वर महाराज के वचनों में स्फुट श्रद्धा हो तो गच्छ संबंधी सिद्धान्त विरुद्ध कदाग्रह को त्याग कर युक्ति युक्त श्री आगमोक्त भगवद्वचन को ग्रहण कीजिये ॥ ४॥ ॥ तथाचोक्तं श्रीहरिभद्रसूरिभिः ॥ पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । युक्ति मद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥५॥ ___ अर्थ-श्रीवीरप्रभु में मेरा पक्षपात नहीं है और कपिलादिकों में द्वेषभाव भी नहीं है किंतु जिसका वचन शास्त्रयुक्ति से संमत हो उसी का वचन ग्रहण करना उचित है ॥५॥ पाठकवर्ग ! जैनपत्र में प्रथम श्री बल्लभविजयजी का लेख इस आशय वाला था कि-बीज़ा श्रावण मासमां सुदी चौथे ५० दिने पर्युषण पर्व थायज नहीं-आज्ञाभंग दोष लागे ॥ (अर्थात गुजराती वीजा श्रावण मासमा ७३ दिने वदी १२ थी पर्युपण पर्वथाय आज्ञाभंग दोष लागे नहीं) इस झूठे मंतव्य के उत्तर में श्री वल्लभविजयजी को पत्र में लिख कर भेजे हुए शास्त्रों के ३ प्रमाण यथा श्रीबृहत्कल्पसूत्र चूर्णिका पाठ । आसाढ़चउम्मासे पडिक्वन्ते पंचेहिं पंचेहिं दिवसेहिं गएहिं जत्थ जत्थ वासजोगं खेत्तं पड़िपुन्नं तत्थ तत्थ पज्जोसवेयव्वं जाव सबीसइराइ मासो ॥ १॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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