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संप्रदाय के वल्लभविजय जी ने आज्ञाभंग दोष लागे इत्यादि सिद्धांत विरुद्ध महामिथ्या अनुचित लेख जैनपत्र में छपवाया था तथा श्रीकालकाचार्य महाराज ने शास्त्र आज्ञाभंग दोष के भय से ५१ या ८० दिने पर्युषण नहीं किये किंतु ४६ दिने पर्युषण किये हैं यह दृष्टांत शास्त्रोंमें और लोक में प्रसिद्ध होने पर भी श्री मोहनलाल जी महाराज का दृष्टांत द्वारा ८० दिने पर्युषण आदि तपगच्छ की समाचारी को सत्य सिद्ध करने के लिये वल्लभविजय ने जैनपत्र में छपवा कर लेख प्रसिद्ध किया था उसका उत्तर तुमने क्या छपवाया सो दिखलाइये।
[ उत्तर] श्री मोहनलाल जी महाराज ने ही अपने दूसरे हस्ताक्षर पत्र में खरतरगच्छ तथा तपगच्छ की पर्युषण आदि समाचारी विषे जो उत्तर लिखा है उस पत्रका (फोटो) ब्लोकपत्र यह दीया है बाँच लीजिये । म
इस ब्लोकपत्र से साफ मालूम होती हैं कि श्री मोहनलाल जी महाराज को शास्त्र संमत ५० दिने पर्युषण आदि खरतरगच्छ की समाचारी में सत्पक्षपात था किंतु सिद्धांत पाठ विरुद्ध ८० दिने पर्युषण आदि तपगच्छ की असत्समाचारी में पक्षपात नहीं था इससे ८० दिने पर्युषण आदि तपगच्छ की समाचारी सत्य सिद्ध नहीं हो सकती है इसी लिये प्रथम भाद्रपद में वा दूसरे श्रावण में याने ५० दिने पर्युषण करनेवालों को आज्ञाभंग दोपलागे इत्यादि वल्लभविजय जी के उत्सूत्र लेखों की मीमांसा शास्त्रीय पाठ प्रमाणों से करता हूँ और आशा है कि-वल्लभ विजयजी आदि तथा हर्षमुनि जी आदि और अन्य पाठकवर्ग सदा शास्त्रानुकूल सत्य पक्ष को अंगीकार करके कदाग्रह पत्त को त्याग देंगे।
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