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( ११ ) वासाणं सवीसए राय मासे वइकंते वासावासं पज्जोसवेमो अंतराविय से कप्पइ नो से कप्पइ तं रयणिं उवायणावित्तए ।
इत्यादि जैन सिद्धांतों के पाठानुसार आषाढ़ सुदि १४ या १५ को चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने के बाद वर्षा काल के २० रात्रि सहित ? मास अर्थात् ५० दिन बीतने पर वर्षा वाप्त के श्रीपर्युषण पर्व श्री पूर्वाचार्य महाराज करते थे और ५० दिन के अंदर भी पर्युषण करने कल्पते है किंतु ५० में दिन की रात्रि को पर्युषण किये विना उल्लंघनी कल्पती नहीं है इसी लिये इस शास्त्र आज्ञा का भंग नहीं करने के वास्ते श्रीकालकाचार्य महाराज ने मध्यस्थ भाव से और शालीवाहन राजा के कहने से ५१ दिने या ८० दिने सिद्धांत विरुद्ध पर्युषण नहीं किये किंतु ४६ दिने किये हैं और भी देखिये कि मास वृद्धि नहीं होने से चंद्रवर्ष संबंधी ५० दिने पर्युषण और ७० दिन शेष रहने का समवायांग सूत्र वाक्य के ज्ञाता तथा पुस्तक पर कल्पसूत्रादि आगम उद्धार कर्ता श्री देवर्द्धि गणि क्षमाश्रमण जी महाराज ने उपर्युक्त श्री पर्युषण कल्पसूत्र के पाठ में नोसे कप्पद इत्यादि वचनों से तथा टीकाकारों ने न कल्पते इस वचन से और अभिवर्द्धितवर्षे इत्यादि पंचाशतैवदिनैः पर्युषण युक्ते तिवृद्धाः । इन वाक्यों से अभिवर्द्धित वर्ष में ५० दिने श्री पर्युषण पर्व करने युक्त हैं ऐमा श्री वृद्ध पूर्वाचार्य महाराजों के वचन है और ५० में दिन की पंचमी या चौथ की रात्रि को सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि श्री पर्युषण कृत्य किये विना उलंघनी कल्पती नहीं हैं यह साफ लिखा है वास्ते शास्त्र आज्ञा भंग दोष के कारण १३ तिथि में पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमण
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