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खरतरगच्छ की समाचारी करने के लिये उक्त गुरु महाराज की आज्ञा को उत्थापन (उलंघन) किया लीजिये पं० रमापति जी ! आप ही के लेख द्वारा स्पष्ट सिद्ध हो गया कि हर्षमुनि जी तपागच्छीय श्रावक समुदाय के पक्षपात से अवश्य ही रागान्ध हैं अतएव खरतरगच्छ सम्बन्धी शुद्ध समाचारी करने के लिये गुरु महाराज की आज्ञा का उत्थापन (उल्लंघन) किया । और भी देखिये कि श्री मोहनलाल जी महाराज ने प्रथम बंबई में हर्षमुनि जी आदि को खरतरगच्छ की समाचारी करने के वास्ते आज्ञा दी उसको प्रमाण नहीं किया । इसीलिये पन्यास श्री यशोमुनि जी को उक्त गुरु महाराज ने पत्र भेजा उसमें लिखा कि खरतरगच्छ में अपने यहाँ कोई समाचारी करनेवाला है नहीं सो तुम करो तो अच्छा है हम राजी हैं हमारी खुसी से प्राज्ञा लिखी है इत्यादि, उस पत्र संबंधी (फोटो) ब्लोक पत्र यह है। म
इस पत्र को बाँचकर बुद्धिमान् स्वयं समझ सकते है कि महात्मा श्री मोहनलाल जी के अंतःकरण में श्रद्धा खरतरगच्छ समाचारी की थी इसीलिये पन्यारा श्री यशोमुनि जी आदि ने अपने गुरु महाराज की पत्र आज्ञा को स्वीकार करके शास्त्रसम्मत खरतरगच्छ की समाचारी अंगीकार की है और गुरु महाराज के पास में रहे हुए हर्षमुनि जी आदि शिष्यों ने गुरु श्री मोहनलाल जी महाराज की आज्ञा का उल्लंघन करके उनकी संमति विना अपनी इच्छानुसार तथा सूरत बंबई आदि क्षेत्रानुरोधमान प्रतिष्ठा शिष्यादि लाभ इत्यादि विचार द्वारा सिद्धांत विरुद्ध ८० दिने पर्युषण आदि तपगच्छ की समाचारी करनी रक्खी है परंतु यह शास्त्र तथा गुरु आज्ञा विरुद्ध समाचारी करनी हर्षमुनि जी आदि को सर्वथा अनुचित है क्योंकि गुरु महाराज की समाचारी का ख्याल न करके उनकी आज्ञा से उनके महान् पूर्वज गुरु महाराजों की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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