________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
हरीतक्यादिवर्गः ।
आद्रिका भेदनी गुर्वी तीक्ष्णोष्णा दीपनी मता ॥ ४९ ॥
कटुका मधुरा पाके रूक्षा वातकफापहा ।
ये
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुणाः कथिताः शुव्यास्तेऽपि संत्यार्द्रकेऽखिलाः ॥५०॥ भोजनाग्रे सदा पथ्यं लवणार्द्रकभक्षणम् । निसंदीपनं रुच्यं जिह्वाकण्ठविशोधनम् ॥ ५१ ॥ कुष्ठ पाण्ड्रामये कृच्छ्रे रक्तपित्ते व्रणे ज्वरे । दा निदाघशरदोर्नैव पूजितमार्द्रकम् ॥ ५२ ॥
टीका - अब अदरक के नाम और गुण कहते हैं. अदरक १, शृंगबेर २, कभद्र ३, आर्दिका ४ ये अदरक के चार नाम हैं. ये अदरक भेदन करनेवाला और भारी, तीखा, गरम, दीपन, कहा गया है ॥ ४९ ॥ कडवा, पाकमें मधुर, रूखा, वात और कफका नाशक है. जितने गुण सोंठमें कहिआये हैं उतनेही सब अदरकभी जानों ॥ ५० ॥ भोजनकरनेसें पहिले अदरक और नमकका सेवन करना पथ्य है, अग्निका दीपन करनेवाला, तथा रुचि करनेवाला है, जीभ और कंट इनका विशोधन है ॥ ५१ ॥ कुष्ठ, पांडुरोग और मूत्रकृच्छ्र, तथा रक्तपित्त, घाव और ज्वर इनमेंभी पथ्य है. दाहमें और ग्रीष्ममें तथा सरदमें अदरक अच्छा नहीं होता ॥ ५२ ॥
अथ पिप्पल्या नामानि गुणाश्च.
पिप्पली मागधी कृष्णा वैदेही चपला कणा । उपकुल्योषणा शौंडी कोला स्यात्तीक्ष्णतंडुला ॥ ५३ ॥
२
टीका- अब पिप्पलीके नाम और गुण कहते हैं. पिप्पली १, मागधी २, कृष्णा ३, वैदेही ४, चपला ५, कणा ६, उपकुल्या ७, उष्णा ८, शौंडी ९, कोला १०, तीक्ष्णा ११, तंडुला १२, ये पीपलके बारह नाम हैं ॥ ५३ ॥ पिप्पली दीपनी वृष्या स्वादुपाका रसायनी । अनुष्णा कटुका स्निग्धा वातश्लेष्महरी लघुः ॥ ५४ ॥ पिप्पली रेचनी हन्ति श्वासकासोदरज्वरान् । कुष्ठप्रमेहगुल्मार्शः लीहशूलाममारुतान् ॥ ५५ ॥
For Private and Personal Use Only