Book Title: Haribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Anekantlatashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trsut

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Page 13
________________ शुभ कामना संदेश पूर्व पुण्योदय से अनन्तगुणी आत्मा के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होकर ज्ञानार्जन की ललक, ज्ञेय को जानने की चाह एवं नया कछ मानवता को समर्पित करवाने की चाह जागृत होती है। और तब यह जीव अपना लक्ष्य बनाकर उत्कृष्ट दिशा की ओर अग्रसर होता है। ऐसी ही ज्ञान के प्रति तड़प, मैंने दीक्षा के समय, मेरे गुरु गच्छ की समुदायवर्तिनी साध्वीजी अनेकान्तलताश्री में देखी थी। तब उन्हें तत्त्वार्थएवं अमरकोष का सांगोपांग अध्ययन करने का सुझाव दिया था। दीक्षा के तुरन्त बाद से साध्वीजी ने अध्ययन के प्रति आग्रह दिखाया तथा अब वर्तमान में निरन्तर प्रगति करते हुए बी.ए., एम.ए. और अब पी.एच.डी. के शोध प्रबन्ध को प्रस्तुत कर गुरु गच्छ की प्रसाति कर रही है। में इस उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए साध्वीजी की अनुमोदना करता हूं एवं शुभ कामना करता हूं कि निरन्तर इसी तरह जीवन में प्रगति करे तथा जिनशासन एवं गुरु गच्छ की शोभा बढ़ावे। -नित्यानंद विजय भगन्यिाभिनन्दनम् आचार की पृष्ठभूमि है - ज्ञान / दशवेकालिक सूत्र में कहा गया है - 'पढमं नाणं तओ दया' - पहले जानो, फिर उसका आचरण करो। ज्ञान के बिना आचार का निर्धारण नहीं हो सकता। ज्ञानी मनुष्य ही आचार और अनाचार का विवेक कर सकता है। अनाचार को छोडकर आचार का पालन कर सकता है। . धर्म-अधर्म, नैतिक-अनैतिक, श्रेय अश्रेय के बीच भेदरेखा खींचने वाला तत्त्व है - ज्ञान / भगवान महावीर ने ज्ञान पर ही बल नहीं दिया, अपितु ज्ञान के सार की खोज की। ‘णाणस्स सारमायारो' - ज्ञान का सार आचार है। __कहा भी है - 'ज्ञानी सर्वत्र पूज्यते' - ज्ञानी यत्र-तत्र-सर्वत्र पूजा जाता है। इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए, आचार की पृष्ठ भूमि को मजबूत बनाने हेतु, हमारी गुरु भगिनी, सरलमना साध्वीजी श्री अनेकान्तलताश्रीजी म.सा. ने 1444 ग्रन्थों के निर्माता, प्रकाण्ड एवं प्रख्यात विद्वान आचार्य श्रीमद्विजय हरिभद्र सूरिजी के 'व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विषय पर गहन अध्ययन कर शोध ग्रन्थ प्रस्तुत किया है। आत्मा को झंकत कर दे, अपनी सुप्त चेतना को जाग्रत कर दे, ऐसे सारभूत अनेक तत्त्व इस ग्रन्थ में संपृक्त है / यह शोध ग्रन्थ ज्ञान पिपासुओं के लिए निश्चित ही, बोधदायक, ज्ञानदायक एवं आत्मोत्थान के मार्ग में सहायक रूप सिद्ध होगा।

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