Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Jain Vidyashala

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Page 9
________________ ५. सी. १७-७ २०-१८ शुद्धि पत्र: અશુદ્ધ - विपुषो दिवाऽस्यै शान्ता स्वानकुलां जात इनिना विषयः ससारे शुद्ध विपृषो दिवाऽस्थै शान्तो स्वानुकुलां ७८-1 ८०-१२ ८३-१८ जातं ज्ञानिना विषयः संसारे वैषम्य वैषम्य १४३-८ ૧૫૬–૧ १११-८ ૧૬૬-૧૬ ૧૬૯-૩ १७२-१ ૧૭૫–૫ બદલે २०८-११ स्वभाव कृतमाहा पूर्वपुरुप સિદ્ધિને सप "रुप" तत्त्वदृष्टिः स्थिरता दाम्भाज काग्रय આલંબનયોગ નિયેગનું त ह्मकम रबनिघं स्वभावा कृतमोहा पूर्वपुरुष સિદ્ધને “रूप” तत्त्वष्टे: स्थिता दाम्भोज काग्र्य અનાલંબનયોગ નિયાગનું तं कर्म निराबा, ૨૧૭-૨૨ २३१-3 २30-3 । । । । । । २४०-२३ २४७-१० २८६-२

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