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अन्तर में हैं जीव को उसका पता नहीं है इसलिये अनादि से संसार में जन्म - मरण कर रहा है। तत्त्व ज्ञान के अभ्यास से शुद्ध स्वरूप की रुचि जाग्रत होती है और विषय-कषाय आदि पाप स्वयमेव नष्ट होने लगते हैं। तत्त्व ज्ञान में स्थिर होकर त्यागने योग्य रागादि का त्याग करना और ग्रहण करने योग्य निज भाव को ग्रहण करना ही संसार सागर से पार होने का उपाय है।
चिंतन - माँ ! और कहानी सुनाओ न। __ माँ- फिर कभी सुनाऊँगी, अभी समय हो रहा है। पंडित जी का प्रवचन प्रारम्भ हो गया होगा। चलो चैत्यालय चलें।
अभ्यास के प्रश्न प्रश्न १ - रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
(क) तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि प्रसिद्ध पुरुषों को................कहते हैं। (ख) तीर्थंकर उसी भव में................जाते हैं। (ग)................छह खंड का राजा होता है और बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजाओं का अधिपति __होता है।
(घ) चक्रवर्ती ने विशाल...............नामक नौका में स्त्री पुत्रादि सहित समुद्र में प्रस्थान किया। प्रश्न २- सत्य/असत्य कथन चुनिये।
(क) सुभौम चक्रवर्ती संक्लेश भाव पूर्वक मरण करके सातवें नरक गया। (सत्य/असत्य) (ख) जीव के परिणामों में विचित्रता नहीं होती। (सत्य/असत्य)
(ग) जीव अपने स्वरूप को भूलकर तीव्र मोह के कारण दुःख को भोगता है। (सत्य/असत्य) प्रश्न ३-दीर्घ उत्तरीय प्रश्न -
(क) णमोकार मंत्र की विराधना विषय पर किसकी कथा प्रथमानुयोग में वर्णित है ? संक्षेप में
लिखिए। (उत्तर - स्वयं लिखें।)
पाठ-२
षट् काल चक्र परिवर्तन प्रश्न - कल्पकाल किसे कहते हैं? उत्तर - १० कोड़ाकोड़ी सागर का एक उत्सर्पिणी और १० कोड़ाकोड़ी सागर का एक अवसर्पिणी काल
दोनों के योग को एक कल्पकाल कहते हैं। प्रश्न - एक कल्पकाल कितने सागर का होता है ? उत्तर - एक कल्पकाल २० कोड़ाकोड़ी सागर का होता है। प्रश्न - कल्पकाल का प्रारम्भ किस काल से होता है ? उत्तर - कल्पकाल का प्रारम्भ उत्सर्पिणी काल से होता है। प्रश्न - उत्सर्पिणी काल किसे कहते हैं? उत्तर - जिसमें मनुष्यों के बल, आयु और शरीर का प्रमाण क्रम - क्रम से बढ़ता जाये उसे उत्सर्पिणी