Book Title: Gyanchakshu Bhagwan Atma
Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 10
________________ . ॥ परमात्मने नमः॥ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा समयसार गाथा 320 की जयसेनाचार्यकृत टीका पर पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के मङ्गल प्रवचन (चक्षु के दृष्टान्त से आत्मा के अकारक अवदक ज्ञानस्वभाव का वर्णन) श्री समयसार, गाथा 320 पर आचार्य जयसेन की विशिष्ट टीका पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी को अत्यन्त प्रिय थी। उन्होंने इस पर स्वतन्त्ररूप से अनेक बार प्रवचन करके भगवान आत्मा के अकारक-अवेदक ज्ञानस्वभाव को अपनी विशिष्ट अध्यात्मरस भरपूर शैली में स्पष्ट किया है। प्रवचन के प्रारम्भ में ही प्रमोदपूर्वक गुरुदेवश्री कहते हैं कि - देखो, भाई! आत्मा के स्वभाव की यह बात सूक्ष्म है ! सूक्ष्म है परन्तु महाकल्याणकारी है; इसलिए समझने में विशेष ध्यान रखना... परन्तु सूक्ष्म है; इसलिए समझ में नहीं आयेगी - ऐसा मत मान लेना। यह बात मेरे स्वभाव की है और मुझे समझने योग्य ही है। इस प्रकार इसकी महिमा लाकर अन्तरङ्ग प्रयत्न से समझना। जीवों को समझने के लिए ही तो आचार्यदेव ने यह बात की है; इसलिए इसे समझा जा सकता है, अनुभव किया जा सकता है। इस गाथा पर जयसेनाचार्य की टीका, व्याख्यान में पहली बार ही पढ़ी जा रही है। सूक्ष्म लगे तो विशेष लक्ष्य रखकर समझना।

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