Book Title: Gyanchakshu Bhagwan Atma Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain Publisher: Tirthdham Mangalayatan View full book textPage 9
________________ e ma -- अहा! ऐसी दशा हमें कब प्रगट हो? | स्वभाव में से विशेष आनन्द प्रगट करने के लिए मुनिराज जङ्गल में बसते हैं। जिन्होंने शुभाशुभ विभाव और पर्याय की रुचि छोड़कर अभेद ज्ञायक की रुचि प्रगट की है, उन्हें ज्ञायक में विद्यमान सर्वशक्तियों का निर्मल अंश एक साथ व्यक्त हो गया है। उसमें दर्शन, ज्ञान, चारित्र, वीर्य इत्यादि अंशों के साथ अतीन्द्रिय आनन्द का अंश भी व्यक्त हुआ है। सम्यग्दर्शन होने पर आनन्द सागर ध्रुव चैतन्य के आश्रय से जो आनन्द अंश प्रगट हुआ है, उसमें अतिशय वृद्धि करने के लिए मुनिराज, घोर जङ्गल में बस अकेले आनन्दमूर्ति ज्ञायक में ही बस रहे हैं। स्वभाव में से विशेष-विशेष स्वरूपानन्द प्रगट करने के लिए मुनिराज, जहाँ सिंह गरजते हैं, नाग फुफकारते हैं - ऐसे एकान्त निर्जन जङ्गल में जा बसे हैं। अहा! ऐसी दशा हमें कब प्रगट हो, सम्यग्दृष्टि को यह भावना होती है। (- वचनामृत प्रवचन, गुजराती, 4/114) - - -Page Navigation
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