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* एकाग्रता और हृदय-शुद्धि *
समाधि है; उसमें भी इशारा है। अगर कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए देख लो, तो उस बांसुरी में वेद है; उसमें सारा वेदांत है; उसमें सारा इशारा है।
कृष्ण कहते हैं कि मैं ही सबकी खोज, और मैं ही सब का मूल उत्स। और यह जो मैं है, तुम्हारे भीतर छिपा हुआ अंतर्यामी है।
कृष्ण बाहर से बोल रहे हैं, लेकिन जिसकी तरफ इशारा कर रहे हैं, वह अर्जुन के भीतर है।
गुरु सदा बाहर से बोलता है, लेकिन जिस तरफ इशारा करता है, वह शिष्य के भीतर है। इसलिए दो पड़ाव हैं यात्रा के। एक तो बाहर का गुरु, वह पहला पड़ाव है। और फिर भीतर का गुरु, वह अंतिम पड़ाव है।
आज इतना ही।
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