Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 323
________________ * दैवी संपदा का अर्जन * और जीवन के सब पहलुओं पर जटिलता की बजाय सरलता | सिर के बल खड़े हो जाएं रास्ते पर, पचास लोग भीड़ लगाकर खड़े को जगह देना। जो भी जटिल हो, उससे बचने की कोशिश करना। | हो जाते हैं। आप दोनों पैर के बल खड़े हों, फिर कोई भीड़ लगाकर जो भी सरल हो, उसको स्थापित करना। | खड़ा नहीं होता। सिर के बल खड़े होते से ही भीड़ लग जाती है, आमतौर से हम उलटा करते हैं। जो भी जटिल हो, वह हमें | | क्योंकि आप कुछ कर रहे हैं, जो कठिन है। हालांकि सिर के बल आकर्षित करता है। अगर एक पहेली सामने रखी हो, जो बहुत | खड़े होने से कुछ मिलता नहीं, लेकिन भीड़ इकट्ठी होती है। और उलझन वाली हो, तो हम पच्चीस काम छोड़कर उसको हल करने | भीड़ इकट्ठी हो, तो हमें रस आता है। में लग जाते हैं। जटिल हमें आकर्षित करता है। जटिल क्यों __ काफ्का, एक बहुत प्रसिद्ध कथाकार, उसने एक छोटी-सी आकर्षित करता है? कहानी लिखी है। एक आदमी उपवास करता था, उपवास का एवरेस्ट है वहां, तो आदमी का मन चढ़ने का होता है। एडमंड | प्रदर्शन करता था। वह चालीस दिन तक उपवास कर लेता था। हिलेरी से किसी ने पूछा कि तुम एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए इतने | | लोग बड़े प्रभावित होते थे। गांव-गांव वह जाता था और चालीस पागलपन से क्यों भरे रहे? तो उसने कहा, चूंकि एवरेस्ट है, दिन के उपवास करता था। फिर एक सरकस गांव में थी जहां वह इसलिए चढ़ना ही पड़ेगा; चुनौती है। | उपवास कर रहा था, तो सरकस वाले लोगों को जंच गई बात, तो जितनी जटिल हो चीज...। अब चांद पर जाने की कोई | | उन्होंने उसको सरकस में ले लिया। सरकस में भी उसको देखने जरूरत नहीं है, पर जाना पड़ेगा। मंगल पर भी जाने की कोई जरूरत | बड़ी भीड़ इकट्ठी होती थी। लेकिन यह धीरे-धीरे...। नहीं है, लेकिन जाना पड़ेगा, क्योंकि मंगल है और हमारा मन बेचैन ___ अगर आप रोज ही सिर के बल खड़े रहें, तो फिर भीड़ इकट्ठी है। हालांकि आप चांद पर पहुंच जाएं कि मंगल पर, आप ही रहेंगे! | नहीं होगी। फिर लोग कहते हैं, वह खड़ा ही रहता है; ठीक है। जो उपद्रव आप यहां कर रहे हैं, वहां करेंगे! मंगल आप में कोई वह जो आदमी उपवास करता था, वह करता ही था। तो पहले फर्क ला नहीं सकता। और यहां दुखी हैं, तो वहां दुखी होंगे! | तो लोगों को कठिन लगा, चालीस दिन! इधर करता, तो कोई पहुंचकर कुछ भी होगा नहीं। | कठिन भी नहीं लगता हमको। हमारे मुल्क में कई लोग कर ही रहे लेकिन जटिल आकर्षित करता है, क्योंकि जटिल में चुनौती है। हैं। जर्मनी में कर रहा था, तो बहुत कठिन बात थी; चालीस दिन चुनौती से अहंकार भरता है। तो जितना कठिन काम हो, उतना बहुत बड़ी बात है। पर धीरे-धीरे लोगों को लगा, यह करता ही है, करने जैसा लगता है। जितना सरल काम हो, उतना करने जैसा नहीं | | अभ्यासी है। लोगों ने उसकी झोपड़ी का टिकट लेना बंद कर दिया। लगता, क्योंकि सरलता से कोई अहंकार को भरती नहीं मिलती। फिर सरकस के लोगों को लगा, अब कोई ज्यादा उसकी टिकट कृष्ण कहते हैं, शरीर, इंद्रियों और अंतःकरण की सभी आयामों भी नहीं खरीदता, तो फिजूल उसको क्यों ढोना! तो उन्होंने उससे में सरलता। . | कहा कि अब तुम जाओ। पर उसने कहा कि अब मैं जा नहीं जो सरल हो, उसको चुनें। और धीरे-धीरे आप पाएंगे, आपका | | सकता, क्योंकि मैं बिना उपवास किए रह नहीं सकता। मुझे रहने अहंकार जाने लगा। जो कठिन है, उसको चुनें। और आप पाएंगे, दो। तो उन्होंने सबसे पीछे जहां जंगली जानवरों के कुछ कटघरे थे, आपका अहंकार बढ़ने लगा। | वहां उसका भी एक कटघरा बना दिया। ___ आदमी खुद भी अपने लिए कठिनाइयां पैदा करता है। क्योंकि लोग आते थे फिर भी, कोई शेर को देखने आता, कोई हाथी को कठिनाइयां पैदा करके जब उनको वह पार कर लेता है, तो वह | | देखने आता, तो उसके कटघरे से निकलते थे। वह इससे भी रस दुनिया को कह सकता है, देखो, इतनी कठिनाइयों को मैंने पार | | लेता था। वह अपने मन में यह सोचता था कि चलो, मुझे देखने किया! सरलता को आप किसको बताने जाइएगा कि पार किया! | | आते हैं। हालांकि उसको लगता था कि अब यहां मुझे देखने कोई उसमें पार करने जैसा कुछ था ही नहीं। आता नहीं। अगर आप जीवन में सरलता को नियम बना लें और जब भी । जब चालीस दिन का कोई परिणाम न रहा, तो उसने घोषणा की कोई विकल्प सामने हो, तो सरल को चुनें...। बहुत कठिन है यह, कि अब मैं सदा के लिए उपवास कर रहा हूं। कोई अस्सी दिन वह सरल को चुनना, क्योंकि अहंकार को इसमें कोई रस नहीं आता। टिक गया। जब अस्सी दिन की खबर पहुंची, तो लोग आने शुरू 295

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