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* गीता दर्शन भाग-7
परमात्मा हो जाता है।
इस चोर के साथ चलें, तो आप असाधु हो जाएंगे। इस चोर से आप यह प्रार्थना का सतत प्रवाह, जैसे पानी गिरता हो प्रपात से, | | लड़ें, इसकी आप न मानें, इसके विपरीत आप चलें, इससे उलटा पत्थरों को काट देता है। कोमल सा जल, सख्त से सख्त पत्थर को | चलना ही आपका ढंग हो जाए, तो आप साधु हो जाएंगे। तोड़ देता है और बहा देता है। ऐसे ही कोमल-सी प्रार्थना सतत अगर आप साध हो जाएंगे, तो भी चोर आपके बहती रहे जीवन में, तो आपका जो भी पथरीला हिस्सा है, वह जो मिट नहीं गया। सिर्फ आपने उसे दबाया है, उसकी मानी नहीं है। भी व्यर्थ है, सांयोगिक है, वह जो भी कूड़ा-कर्कट जन्मों-जन्मों में | अगर आप चोर हो गए, तो भी आपके भीतर अचोर छिपा है। इकट्ठा किया है, वह चाहे कितना ही कठोर हो, पाषाणवत हो, वह ___ जो कृष्ण कह रहे हैं दैवी संपदा, आसुरी संपदा, वे दोनों आपके सब प्रार्थना की धार उसे बहा देगी। और केवल वही बच रहेगा, | भीतर हैं। तो जो चोरी कर रहा है, उसके भीतर भी अचोर छिपा है, जो आपकी वास्तविकता है, जो आपकी आत्मा है। इसे पा लेना ही | वह भी नष्ट नहीं हो गया है, उसने उसे दबाया है। जब-जब चोर परमात्मा को पा लेना है।
| चोरी करने गया है, तब-तब उसके भीतर छिपे साधु ने कहा है, मत
कर, बुरा है, पाप है। छोड़; इससे बच। लेकिन इन आवाजों को
उसने अनसुना किया है; इन आवाजों के प्रति वह अपने को बधिर तीसरा प्रश्नः रात आपने कहा कि परम साधु एक बना लिया है; इन आवाजों को उसने दबाया है; इन आवाजों की क्षण में परम असाधु हो सकता है, लेकिन आपने यह | उसने उपेक्षा की है। पर ये वहां भीतर मौजूद हैं। भी कहा है कि अस्तित्व में पीछे लौटने का कोई उपाय जो साधु हो गया है, अचोर हो गया है चोर को दबाकर, उसके नहीं। क्या इसे स्पष्ट करिएगा?
| भीतर भी चोर मौजूद है। वह भी कह रहा है कि कहां तु उलझा है! क्या तू कर रहा है। जीवन हाथ से जा रहा है। यह आत्मा-परमात्मा
का पक्का नहीं है। स्वर्ग है या नहीं, निश्चित नहीं है। मृत्यु के बाद OT द्वैत स्थिति से पीछे लौटने का कोई उपाय नहीं है, द्वैत | कोई बचता है, किसी ने लौटकर कहा नहीं है। यह सब 1 स्थिति से पीछे लौटने का सदा उपाय है। अद्वैत स्थिति कपोल-कल्पित हो सकता है। यह सब एक जागतिक गप्प हो
अस्तित्व की स्थिति है; द्वैत स्थिति माया की स्थिति है। सकती है। जिन्होंने कहा है, उन्होंने भी जीते-जी कहा है कि आत्मा इसे थोड़ा समझ लें।
| अमर है। मरकर लौटकर उन्होंने भी नहीं कहा है। उनकी बात का साधु हम किसे कहते हैं? वह जो असाधु से उलटा है। साधु की | भरोसा क्या है? और उनकी बातों में उलझकर तू जीवन का रस खो परिभाषा कौन करेगा? साधु की परिभाषा असाधु से होगी। अगर रहा है। ये लाख रुपए सामने पड़े हैं, कोई देखने वाला नहीं है, इन्हें असाधु हिंसक है, तो साधु अहिंसक है। अगर असाधु चोर है, तो | तू उठा ले, इन्हें तू भोग ले। साधु अचोर है। अगर असाधु बुरा है, तो साधु भला है। अगर जगत | | साधु के भीतर भी चोर खड़ा है, असाधु के भीतर साधु खड़ा है; में कोई असाधु न हो, तो साधु के होने की कोई जगह नहीं है। | ये मिट नहीं गए हैं। और जो गणित की बात समझने की है, जो असाधु चाहिए साधु होने के लिए, द्वंद्व जरूरी है।
| गहरे विज्ञान की बात समझने की है, वह यह कि जिसका हमने इसलिए साधुता, असाधुता दोनों ही माया के अंग हैं। अच्छा | | उपयोग किया है, वह थक जाता है। जैसे मेरे दो हाथ हैं; अगर मैं आदमी भी माया से भरा है, बुरा आदमी भी। दोनों ही अंधे हैं, | बाएं हाथ का उपयोग करूं दिनभर, तो बायां हाथ थक जाएगा; क्योंकि दोनों ने एक हिस्से को चुना है दूसरे के विपरीत। और | और दायां हाथ दिनभर विश्राम करेगा, ज्यादा शक्तिशाली होगा। जिसके विपरीत हम लड़े हैं, उसमें गिर जाने का डर सदा है। किसान जानते हैं कि अगर हमने इस वर्ष फसल एक जमीन पर
अगर आपके भीतर चोरी है...सबके भीतर चोरी है; सबके भीतर ले ली है, तो वह थक गई जमीन। जो जमीन बंजर पड़ी रही, छीनने का मन है; सबके भीतर उसके मालिक हो जाने का मन है, जिसका हमने उपयोग नहीं किया, वह थकी नहीं है, वह ऊर्जा से जिसके हम मालिक नहीं हैं। तो चोरी की भावना सबके भीतर है; | | भरी है। सबके भीतर चोर छिपा है। इस चोर से अगर आप राजी हो जाएं, तो अगर आपने अपने भीतर के साधु का उपयोग किया है, तो
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