Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 438
________________ * गीता दर्शन भाग-7* आप सब चीजें भूल जाते हैं। दस साल पहले कोई आपको यह जो हमारा क्रोध, लोभ और मोह है, इन्हें आप सिद्धांतों की मिला था। नाम भूल गया, शक्ल भूल गई, कुछ भी याद नहीं रहा। | तरह तो समझ ले सकते हैं, लेकिन जीवन व्यवहार में इनके स्वरूप लेकिन यह आप कभी नहीं भूलते कि वह स्त्री थी कि पुरुष-यह को पहचानना असली सवाल है। और हम उसमें इतने लिप्त होते कभी नहीं भूलते। आपको याद है कि आपको कभी ऐसा शक पैदा हैं कि उसे अपने जीवन में पहचानना अक्सर कठिन होता है। हुआ हो कि बीस साल पहले एक आदमी, एक व्यक्ति मिला था, __ मैंने सुना है कि एक कंजूस आदमी ने अपने बेटे को चश्मा वह स्त्री थी या परुष? यह शक आपको हो ही नहीं सकता। इसका दिलवाया। दसरे दिन सबह ही बेटा बाहर बैठा है अपनी किताबें मतलब क्या है? वगैरह लिए। उसके बाप ने भीतर के कमरे से पूछा कि बेटे, क्या इसका मतलब यह है कि आपके ऊपर गहरे से गहरा जो संस्कार कुछ पढ़ रहे हो? उस लड़के ने कहा कि नहीं। तो बाप ने पूछा, तो पड़ता है, वह स्त्री और पुरुष होने का पड़ता है। उसका चेहरा कैसा क्या कुछ लिख रहे हो? उसके लड़के ने कहा, नहीं। तो बाप ने था; भूल गया। उसका नाम क्या था; भूल गया। उसकी जाति क्या कहा, तो फिर चश्मा उतारकर क्यों नहीं रख देते! लगता है, तुम्हें थी: भूल गई। वह लंबा था कि ठिगना था: सब भूल गया। लेकिन फिजूलखर्ची की आदत पड़ गई है। उसका सेक्स, वह आपको याद है। इसका मतलब यह है कि सबसे वह जो चश्मा आंख पर रखा है, जब लिख भी नहीं रहे, पढ़ भी गहरी आपकी स्मृति इस बात को पकड़ती है। सबसे ज्यादा चेतना नहीं रहे, तो उसका फिजूलखर्च हो रहा है, चश्मे का। इसके आस-पास घूमती है। यह हमें हंसने योग्य लग सकता है। लेकिन लोभी आदमी की यह जो हमारा काम है, यह कोई क्षण दो क्षण की बात नहीं कि | यह दृष्टि है। वह सब जगह बचा रहा है। और कई दफे ऐसा हो कभी-कभी आपको पकड़ता है। यह चौबीस घंटे आपको घेरे हुए। | जाता है कि हम लोभ के नाम पर जो बचाते हैं, उसको भी हम अच्छे है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है। शायद चौबीस घंटे आप काम हैं। सिद्धांत बता देते हैं। फिर इसमें जहां-जहां सहयोग मिलता है, वहां-वहां लोभ पैदा होता फ्रायड ने एक बहुत अनूठी बात कही है, उसने कहा है कि है। वह इस काम की धारा में ही लोभ का वर्तुल है। | आमतौर से जो लोग ब्रह्मचर्य में उत्सुक होते हैं, वे लोभी होते हैं, जैसे नदी बहती है, और उसमें छोटे-छोटे भंवर पैदा हो जाते हैं। ग्रीडी होते हैं। वीर्य खो न जाए, इसकी कंजूसी उनको ब्रह्मचारी बना तो आपकी काम की जो नदी बहती है, जिस-जिस से सहारा मिलता | देती है। है, वह आपके लोभ का भंवर हो जाता है। और जिस-जिस से ___ यह बड़ी सोचने जैसी बात है। और इधर जैसा मैंने अनेक लोगों बाधा मिलती है, वह आपके क्रोध का भंवर हो जाता है। फिर उन को अनुभव किया है, अक्सर यह बात सच है। सौ प्रतिशत सच नहीं दोनों की परतें हमारे ऊपर बैठ जाती हैं। है, क्योंकि ब्रह्मचर्य की दिशा में जाने वाला एक प्रतिशत वह आदमी उठते-बैठते, चलते-फिरते, आप खयाल लेते हों, न लेते हों, | भी होता है, जो कामवासना से मुक्त होकर ब्रह्मचर्य की तरफ जाता व्यवहार करते, आपका लोभ और क्रोध काम करता है। आप रास्ते | | है। सौ में निन्यानबे तो वे लोग होते हैं, जो सिर्फ लोभ के कारण पर चलते आदमी से नमस्कार भी तभी करते हैं, जब कुछ लोभ | ब्रह्मचर्य की तरफ जाते हैं कि कहीं शक्ति खर्च न हो जाए। उससे जुड़ा हो। कोई लोभ-अतीत में, आज या भविष्य आपने शायद इस दिशा से कभी सोचा न हो। और अक्सर में-कहीं न कहीं उससे कुछ लाभ मिल सकता होगा, तो ही आप आपके साधु-संन्यासी जो आपको समझाते हैं, वे समझाते हैं कि नमस्कार करते हैं। नहीं तो आप नमस्कार करने वाले भी नहीं। हाथ | | बचाओ अपनी शक्ति को। वीर्य का एक बिंदु खोने का मतलब है, जोड़ने तक का श्रम आप उठाएंगे नहीं। न मालूम कितना सेर खून खो गया। वीर्य का एक बिंदु खो गया, और आपकी नजर जहां भी जाती है, वहां तत्क्षण मित्र और शत्रु | तो न मालूम कितना नुकसान हो गया। वे जो समझा रहे हैं आपको, को पहचानती है। जिससे भी थोड़ी-सी भी विरोध की संभावना है, | | आपको डरवा रहे हैं; वे आपके लोभ को जगा रहे हैं, वे यह कह या थोड़ी-सी भी बाधा पड़ सकती, थोड़ी प्रतियोगिता हो सकती है, । रहे हैं कि शक्ति खो न जाए। उसके प्रति आपका क्रोध जलता ही रहता है। भभक सकता है, | इसलिए अक्सर जो मुल्क कंजूस होते हैं, वे ब्रह्मचर्य की बहुत किसी भी क्षण मौका मिल जाए तो। चर्चा करते हैं। और जो जातियां निपट कंजूस होती हैं, वे ब्रह्मचर्य 4101

Loading...

Page Navigation
1 ... 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450