Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 441
________________ * नरक के द्वारः काम, क्रोध, लोभ * क्योंकि आप मेरे ही फैले हुए रूप हैं। अगर आपको मैं दुखी करता | | भी नहीं था। शास्त्रों पर किसी के नाम भी नहीं थे। वह कोई हूं, तो मैं अपने ही दुख का इंतजाम कर रहा हूं। देर-अबेर यह दुख | व्यक्तियों की संपदा भी नहीं थी। अनंत-अनंत काल में, मुझे पकड़ लेगा। आपको सुख दे रहा हूं, तो देर-अबेर यह सुख अनंत-अनंत लोगों ने जो जाना है, उस जानने को लोग निखारते मेरे पास आ जाएगा। गए। शास्त्र संपदा थी सबके अनुभव की। एक बार जिस आदमी को यह समझ में आ गया कि इस जगत __ वेद हैं, वे किसी एक व्यक्ति के वचन नहीं हैं। अनंत-अनंत में अलग-अलग कटे-कटे लोग नहीं हैं; हम अलग-अलग ऋषियों ने जो जाना है, वह सब संगृहीत है। उपनिषद हैं, वे किसी आयलैंड नहीं हैं, द्वीप नहीं हैं, हम एक महाद्वीप हैं। और अगर | एक व्यक्ति के लिखे हुए विचार नहीं हैं। वह अनंत-अनंत लोगों हमारे बीच में फासला दिख रहा है, तो वह फासला भी बीच में आ | ने जाना है, उनका सारभूत है। कुछ पक्का पता लगाना भी मुश्किल गए पानी की दीवार का है। नीचे हम जुड़े हैं, नीचे जमीन एक है। है कि किसने जाना है। व्यक्ति खो गए हैं. सिर्फ सत्य रह गए हैं। और उस पानी की दीवार का कोई बहुत मूल्य नहीं है। पानी की भी | | कृष्ण ने जब यह बात कही, तब शास्त्र का अर्थ था, जाने हए कोई दीवार होती है? | लोगों के वचन। इन वचनों को त्यागकर जो अपनी इच्छा से बर्तता यह जो मेरे और आपके बीच में दीवार है, यह पानी की भी नहीं, | | है, वह सिद्धि को प्राप्त नहीं होता। क्योंकि एक व्यक्ति का अनुभव हवा की ही दीवार है। इस दीवार के दोनों तरफ जिस हवा से आप | ही कितना है! एक व्यक्ति की छोटी-सी बुद्धि कितनी है! वह ऐसे श्वास ले रहे हैं, उसी हवा से मैं श्वास ले रहा हूं, हम दोनों जुड़े ही है, जैसे सूरज निकला हो, और हम अपना टिमटिमाता दीया हैं। हम सब जुड़े हैं। इस संयुक्तता का बोध आ जाए, तो जीवन में | लेकर रास्ता खोज रहे हैं। कल्याण का भाव आता है। एक व्यक्ति का अनुभव बहुत छोटा है। एक व्यक्ति का होश • और जो काम, क्रोध, लोभ से भरा है, उसे यह संयुक्तता का | बहुत छोटा है। अपने ही अनुभव से जो चलने की कोशिश करेगा, भाव नहीं आ सकता। उसके लिए सब दुश्मन हैं, सब प्रतियोगी हैं। वह अनंत काल लगा देगा भटकने में। लेकिन जाने हुए पुरुषों का, जो चीजें वह छीनना चाह रहा है, वही दूसरे छीनना चाह रहे हैं। जागे हए परुषों का जो वचन है, उसका सहारा लेकर जो चलेगा, इसलिए दूसरों का सुख वह कैसे चाह सकता है! दूसरों के लिए | वह व्यर्थ के भटकाव से बच जाएगा। आशीर्वाद उससे नहीं बह सकता। अभिशाप ही दूसरों के लिए रास्ता छोटा हो सकता है, अगर थोड़ा-सा नक्शा भी हमारे पास उसके पास है। हो। शास्त्रों का अर्थ है, नक्शे। शास्त्रों को सिर पर रखकर बैठ जाने और जो पुरुष शास्त्र की विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से | से कोई मंजिल पर नहीं पहुंचता। लेकिन वे नक्शे हैं, उन नक्शों का बर्तता है, वह न तो सिद्धि को प्राप्त होता है और न परम गति को | | अगर ठीक से उपयोग करना समझ में आ जाए, तो आप बहुत-सी और न सुख को ही प्राप्त होता है। भटकन से बच सकते हैं। जहां जो भूल-चूक जिन लोगों ने पहले इस बात को समझना बड़ा जरूरी है और गहरा है। | की, उसको आपको करने की जरूरत नहीं है। जो व्यक्ति शास्त्र की विधि को त्यागकर...। शास्त्र कोई बंधे-बंधाए उत्तर नहीं हैं; शास्त्र तो केवल मार्ग को शास्त्र की विधि क्या है? शास्त्र क्या है? इसे समझें। खोजने के इशारे हैं। और उन इशारों को जो ठीक से समझ लेता है शास्त्र का अर्थ है, सदियों-सदियों में, सनातन से जिन्होंने जाना और उनके अनुसार चलता है, वह सिद्धि को प्राप्त हो जाता है। है, उनका सार निचोड़। जिन्होंने जीवन के आनंद को अनुभव किया | | और जो उनको त्याग देता है, वह न तो सिद्धि को प्राप्त होता है, न है, जीवन के वरदान की वर्षा जिन पर हुई है, उन्होंने जो कहा है, | परम गति को, औल्न सुख को ही प्राप्त होता है। वह भटकता है। उसका जोड़। | यह आज के युग में बात और कठिन हो गई, क्योंकि आज आज कठिन हो गई है यह बात। ऐसी कठिन उस दिन बात न | | शास्त्र बहुत हैं। कोई पांच हजार शास्त्र प्रति सप्ताह लिखे जाते हैं। थी, जब कृष्ण ने यह कहा था। उस दिन हर कोई शास्त्र नहीं| पुस्तकें बढ़ती चली जाती हैं। और कुछ पक्का पता लगाना मुश्किल लिखता था। कोई सोच ही नहीं सकता था कि बिना जाने मैं लिखू। है, कौन लिख रहा है, कौन नहीं लिख रहा है। पागल भी लिख रहे वह सोचने के बाहर था। क्योंकि बिना जाने लिखने में कोई अर्थ | | हैं। उनको राहत मिलती है, केथासिस हो जाती है। उनका पागलपन 413

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