Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 443
________________ * नरक के द्वारः काम, क्रोध, लोभ * है, वह उसका मार्ग होगा। | जाएगा और सिर्फ हंसी योग्य हो जाएंगे। अर्जुन क्षत्रिय है। आज के क्षत्रिय को तय करना मुश्किल है। कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि तू शास्त्र की तरफ देख, क्षत्रिय आज कौन क्षत्रिय है, तय करना मुश्किल है। क्योंकि शास्त्र की वह के लिए शास्त्र ने क्या कहा है! तू उससे यहां-वहां मत हट, क्योंकि व्यवस्था टूट गई। और समाज का वह जो ढंग था, चार विभाजन | वही तेरी सिद्धि है। क्षत्रिय होकर ही और क्षत्रिय के धर्म का स्पष्ट कर दिए थे, जिनमें कोई लेन-देन नहीं था एक तरह का, ठीक-ठीक अनुसरण करके ही तेरा मोक्ष तुझे मिलेगा। जिनमें आत्माएं एक-दूसरे में प्रवेश नहीं कर पाती थीं, वह आज तो क्षत्रिय की क्या सिद्धि होगी? और क्या उसका मार्ग होगा? संभव नहीं है। आज सब अस्तव्यस्त हो गया है। और कृष्ण कह रहे हैं, क्षत्रिय सोचता ही नहीं कि कोई मरता है; समाज-सुधार के नाम पर नासमझ लोगों ने बड़ी उपद्रव की बातें | क्षत्रिय सोचता ही नहीं कि भविष्य में क्या होगा। क्षत्रिय सोचता ही खड़ी कर दी हैं। उन्हें कुछ पता भी नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं। नहीं। क्षत्रिय लड़ना जानता है। लड़ना उसका ध्यान है। वह युद्ध में लेकिन उस दिन जिस दिन अर्जुन से कृष्ण ने यह बात कही, सब ध्यानस्थ हो जाता है। वह न यह जानता है कि मैं मर रहा हूं कि स्थिति साफ थी। दूसरा मर रहा है; वह युद्ध में निर्भय हो जाता है। युद्ध के क्षण में अर्जुन क्या कह रहा है? अर्जुन ब्राह्मण की मांग कर रहा है। वह उसकी चित्त की दशा न तो मारने के, न तो मरने के विचार से इस ढंग का व्यवहार कर रहा है, जो ब्राह्मण को करना चाहिए। वह | डोलती। वह निश्चित खड़ा हो जाता है। कौन मरता है, यह गौण जो प्रश्न उठा रहा है, वे ब्राह्मण के हैं। यह हिंसा होगी, लोग मर है। युद्ध उसके लिए एक खेल है, वह अभिनय है, वह उसके लिए जाएंगे; इस राज्य को पाकर क्या करूंगा; किसके लिए पाऊं; इससे | | कोई बहुत गंभीरता का प्रश्न नहीं है। वह दोपहर लड़ेगा, सांझ तक तो बेहतर है, मैं सब छोड़ दूं और संन्यस्त हो जाऊं। वह प्रश्न उठा | | लड़ेगा, सांझ बात भी नहीं करेगा कि युद्ध में क्या हुआ। रात रहा है, जो ब्राह्मण-चरित्र के व्यक्ति के लिए उचित है। और अगर | | विश्राम करेगा। रात उसकी नींद में खलल भी नहीं पड़ेगी कि दिनभर अर्जुन ब्राह्मण होता, तो कृष्ण ने यह गीता उससे नहीं कही होती। | इतना युद्ध हुआ, इतने लोग कटे। वह रात मजे से सोएगा। सुबह कृष्ण यह गीता कहने को मजबूर हुए, क्योंकि अर्जुन का जो | | उठकर फिर युद्ध की तरफ चल पड़ेगा। युद्ध उसके लिए एक खेल टाइप था. उसके जो व्यक्तित्व का ढांचा था. वह क्षत्रिय का था। और अभिनय है। और वह कोई एक जन्म की बात न थी। अर्जुन अनंत जन्मों से कृष्ण कह रहे हैं कि तू इस पूरे युद्ध को एक नाटक से ज्यादा मत क्षत्रिय था। बहुत-बहुत बार क्षत्रिय रह चुका था। क्षत्रिय होना जान। और तेरी जो शिक्षा है, तेरी जो दीक्षा है, तेरा जो संस्कार है, उसका गहरा संस्कार था। वह उसके रोएं-रोएं में समाया था। शास्त्र जो कहता है, तू उसके हिसाब से चुपचाप चल। तू अपना उसकी आत्मा क्षत्रिय की थी। कर्तव्य पूरा कर। तू चिंता में मत पड़। यह चिंता तुझे शोभा नहीं इसलिए यह अगर ब्राह्मण भी बन जाए, तो इसका ब्राह्मण होना | देती। अगर इस चिंता में यह करूं या वह करूं; हां या न; अच्छा ऊपर-ऊपर होगा. धोखा होगा. पाखंड होगा। यह जनेऊ वगैरह या बरा–त उलझ गया, तो त अपने धर्म से च्यत हो जाएगा। और पहन ले और चंदन-तिलक लगा ले और बैठ जाए, तो भी यह | तब तुझे अनंत जन्म लग जाएंगे। और यहां इस युद्ध के क्षण में इसी जंचेगा नहीं। इसके भीतर जो ढंग है, वह योद्धा का है। यह ब्राह्मण क्षण तू मुक्त हो सकता है। बस इतना ही तुझे करना है कि तू अपने होने के योग्य नहीं है। यह ब्राह्मण हो भी नहीं सकता। क्योंकि | कर्ता का भाव छोड़ दे। ब्राह्मण होना कोई एक क्षण की बात नहीं है। इसके अनंत जन्मों के क्षत्रिय वही है, जो कर्ता नहीं है। संस्कार साफ करने होंगे, तब यह ब्राह्मण हो सकता है। यह कोई | जापान में क्षत्रियों का एक समूह है, समुराई। वह अब भी क्षत्रिय एक क्षण का निर्णय नहीं है कि हमने तय किया और हम हो गए। | है। और अनेक पीढ़ियों से समुराई तैयार किए गए हैं। क्योंकि हर जैसे आज आप तय कर लें कि स्त्री होना है, इससे कुछ फर्क | कोई समुराई नहीं हो सकता; बाप समुराई रहा हो, तो ही बेटा नहीं पड़ेगा आपके तय करने से। आप स्त्री के कपड़े पहन सकते | समुराई हो सकता है। हैं, चाल-ढाल थोड़ी सीख सकते हैं। लेकिन स्त्रियां भी आप पर | | हम, जैसा कि फलों की फसल तैयार करते हैं, तो अच्छे फलों हंसेंगी। रहेंगे आप पुरुष ही। वह स्त्री होना ऊपर का पाखंड हो | का बीज चुनते हैं। फिर और उनमें से अच्छे फल, फिर उनमें से 415|

Loading...

Page Navigation
1 ... 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450