Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 434
________________ * गीता दर्शन भाग-7 की तलाश करते हैं। जैसे ही पूछेगे कि मिल क्या रहा है, तो हाथ खाली मालूम पड़ते ___ मेरे गांव में मेरे मकान से कोई चार सौ कदम की दूरी पर एक हैं। मिल कुछ भी नहीं रहा है। इसलिए कोई भी विचारशील व्यक्ति वक्ष है। चार सौ कदम काफी फासला है। और मकान में जो नल उदास हो जाता है. मिल कछ भी नहीं रहा है। का पाइप आता है, वह अचानक एक दिन फूट पड़ा, तो जमीन - रोज सुबह उठ आते हैं, रोज काम कर लेते हैं; खा लेते हैं; पी खोदकर पाइप की खोजबीन करनी पड़ी कि क्या हुआ! चार सौ लेते हैं; सो जाते हैं। फिर सुबह हो जाती है। ऐसे पचास वर्ष बीते, कदम दूर जो वृक्ष है, उसकी जड़ें उस पाइप की तलाश करती हुई | और पचास वर्ष बीत जाएंगे। अगर सौ वर्ष का भी जीवन हो, तो पाइप के अंदर घुस गई थीं, पानी की खोज में। बस यही क्रम दौड़ता रहेगा। और अभी तक कुछ नहीं मिला, कल वैज्ञानिक कहते हैं कि वक्ष बड़े हिसाब से अपनी जड़ें पहंचाते | क्या मिल जाएगा? हैं-कहां पानी होगा? चार सौ कदम काफी फासला है और वह __ और मिलने जैसा कुछ लगता भी नहीं है। मिलेगा भी क्या, भी लोहे के पाइप के अंदर पानी बह रहा है। लेकिन वृक्ष को कुछ | | इसकी कोई आशा भी बांधनी मुश्किल है। धन मिल जाए, तो क्या पकड़ है। उसने उतने दूर से अपनी जड़ें पहुंचाईं। और ठीक उन | | मिलेगा? पद मिल जाए, तो क्या मिलेगा? जीवन रिक्त ही रहेगा। जड़ों ने आकर अपना काम पूरा कर लिया, कसते-कसते उन्होंने ___ जीवेषणा अंधी है, पहली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है। पाइप को तोड़ दिया लोहे के। वे अंदर प्रवेश कर गईं और वहां से | | और इसलिए जीवेषणा से उठने का जो पहला प्रयोग है, वह आंखों पानी पी रही थीं वर्षों से वे उपयोग कर रही होंगी। के खोलने का प्रयोग है कि मैं अपने जीवन को देखें कि मिल क्या ___ वृक्ष को भी पता नहीं कि वह क्यों जीना चाहता है। अफ्रीका के रहा है! और अगर कुछ भी नहीं मिल रहा है, यह प्रतीति साफ हो जंगल में वृक्ष काफी ऊंचे जाते हैं। उन्हीं वृक्षों को आप यहां लगाएं, | जाए, तो जीवेषणा क्षीण होने लगेगी। उतने ऊंचे नहीं जाते। ऊंचे जाने की यहां कोई जरूरत नहीं है। | मैं जीना इसलिए चाहता हूं कि कुछ मिलने की आशा है। अगर अफ्रीका में जंगल इतने घने हैं कि वैज्ञानिक कहते हैं, जिस वृक्ष को | | यह स्पष्ट हो जाए कि कुछ मिलने वाला नहीं है, कुछ मिल नहीं बचना हो, उसको ऊंचाई बढ़ानी पड़ती है। क्योंकि वह ऊंचा हो । | रहा है, तो जीने की आकांक्षा से छुटकारा हो जाएगा, उसकी निर्जरा जाए, तो ही सूरज की रोशनी मिलेगी। अगर वह नीचा रह गया, तो | हो जाएगी। मर जाएगा। __पहली बात, आंख खोलकर देखना जरूरी है, सजग होना जरूरी वही वृक्ष अफ्रीका में ऊंचाई लेगा तीन सौ फीट की। वही वृक्ष | है कि जीवन क्या दे रहा है! भारत में सौ फीट पर रुक जाएगा। जीवेषणा में यहां संघर्ष उतना | फिर दूसरी बात, देखना जरूरी है कि मिल तो कुछ भी नहीं रहा और जीवन रोज मौत में उतरता जा रहा है। और आज नहीं कल वैज्ञानिक कहते हैं, जेब्रा है, ऊंट है, उनकी जो गर्दनें इतनी लंबी | | मैं मरूंगा। हो गई हैं, वह रेगिस्तानों के कारण हो गई हैं। जितनी ऊंची गर्दन । हालांकि कोई इसको सुनने के लिए राजी नहीं होता। हम सब होगी, उतना ही जानवर जी सकता है, क्योंकि इतने ऊपर वृक्ष की यही सोचते हैं कि सदा दूसरे ही मरते हैं, मैं तो कभी मरता ही नहीं। पत्तियों को वह तोड़ सकता है। सुरक्षा है जीवन में, तो गर्दन बड़ी जब भी कोई मरता है, और कोई मरता है; मैं तो कभी मरता नहीं। होती चली गई है। इसलिए भ्रांति बनी रहती है कि मैं नहीं मरूंगा। चारों तरफ जीवन का बचाव चल रहा है। छोटी-सी चींटी भी चीन का एक बहुत बड़ा कथाकार हुआ, लूसम। उसने एक अपने को बचाने में, खुद को बचाने में लगी है। बड़े से बड़ा हाथी छोटी-सी कहानी लिखी है। उसमें लिखा है कि एक युवक एक भी अपने को बचाने में लगा है। हम भी उसी दौड़ में हैं। | ज्योतिषी के पास ज्योतिष सीखता था। उसने अपने गुरु से एक दिन __ और सवाल यह है और यहीं मनुष्य और पशुओं का फर्क | | पूछा कि अगर मैं लोगों को सत्य-सत्य कह देता हूं उनकी हाथ की शुरू होता है कि हमारे मन में सवाल उठता है कि हम जीना क्यों | रेखाएं पढ़कर, तो पिटाई की नौबत आ जाती है। झूठ मैं कहना नहीं चाहते हैं? आखिर जीवन से मिल क्या रहा है जिसके लिए आप चाहता। झूठ कहता हूं, तो लोग बड़े प्रसन्न होते हैं। जीना चाहते हैं? __ एक घर में बच्चे का जन्म हुआ। लोगों ने मुझे बलाया। तो मैंने नहीं है। 4061

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