Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 435
________________ * नरक के द्वारः काम, क्रोध, लोभ * देखकर उनको बताया, झूठ बोला, कि महायशस्वी होगा। सभी हम इतने व्यस्त होते हैं जीवित होने में, जीवित बने रहने में, कि मां-बाप को भरोसा होता है. सभी बच्चे प्रतिभाशाली की तरह पैदा जीवन क्या है, उससे परिचित होने का हमें न समय होता है. न होते हैं। सभी मां-बाप को भरोसा होता है कि इसका तो कोई सुविधा होती है। उस मंदिर के द्वार अटके ही रह जाते हैं, बंद ही मुकाबला नहीं। रह जाते हैं। महायशस्वी होगा, बड़ा प्रतिभाशाली है। धन्यभाग हैं तुम्हारे। वे जिन्होंने जीवेषणा छोड़ दी, उन्होंने जीवन का राज जाना। वे ही लोग बड़े खुश हुए, उन्होंने काफी भेंट दी, शाल ओढ़ाई, भोजन | | परम बुद्धत्व को प्राप्त हुए। और जिन्होंने जीवेषणा छोड़ दी, उन्होंने कराया, सेवा की। | अमृत को पकड़ लिया, अमृत को पा लिया। जिन्होंने जीवेषणा मगर मैं झूठ बोला था, तो उससे मेरे मन में चोट पड़ती रही। पकड़ी, वे मौत पर पहुंचे। दूसरे घर में बच्चा पैदा हुआ, तो मैंने सत्य ही कह दिया कि बाकी | __ इतना तो तय है कि जो जीवेषणा से चलता है, वह मृत्यु पर तो और कुछ पक्का नहीं है, लेकिन यह एक दिन मरेगा, इतना भर | पहुंचता है। इससे उलटा भी सच है लेकिन वह कभी आपका पक्का है। तो मेरी वहां पिटाई हुई। लोगों ने मुझे मारा और कहा कि | अनुभव बने तभी–कि जो जीवेषणा छोड़ता है, वह अमृत पर तुम ज्योतिष तो दूर, तुम्हें शिष्टाचार का भी पता नहीं! | पहुंचता है। इसको हम निरपवाद नियम कह सकते हैं। अब तक तो उसने अपने गुरु से पूछा कि आप मझे कुछ रास्ता बताएं। इस जगत में जितने लोगों ने जीवेषणा की तरफ से दौड़ की, वे मृत्यु झूठ भी मुझे न बोलना पड़े और पिटाई की नौबत भी न आए। | पर पहुंचते हैं। कुछ थोड़े-से लोग जीवेषणा को छोड़कर चले, वे क्योंकि अब यह धंधा मैंने स्वीकार कर लिया है ज्योतिष का। | अमृत पर पहुंचे हैं। तो उसके गुरु ने कहा, अगर ऐसा अवसर आ जाए, तो मैं तुम्हें | उपनिषद, गीता, कुरान, बाइबिल, धम्मपद, वे उन्हीं व्यक्तियों अपना सार बता देता हं जीवनभर का, जो मैं करता है। अगर झूठ की घोषणाएं हैं जिन्होंने जीवेषणा छोड़कर अमृत को उपलब्ध भी न बोलना हो और पिटना भी न हो, तो तुम कहना, वाह-वाह, | | किया है। क्या बच्चा है! ही-ही-ही। तुम कुछ वक्तव्य मत देना, तो तुम झूठ ___ मृत्यु के पार जाना हो, तो जीवन की इच्छा को छोड़ देना जरूरी बोलने से भी बचोगे और पिटाई भी नहीं होगी। है। यह बड़ा उलटा लगेगा। जीवन बड़ा जटिल है। जीवन निश्चित सभी होशियार ज्योतिषी आपको देखकर यही करते हैं। | ही काफी जटिल है और विरोधाभासी है, पैराडाक्सिकल है। जीवेषणा की तरफ अगर थोडी-सी भी ध्यान की प्रक्रिया लौटे. इसका मतलब यह हआ कि जो जीवन को पकडता है. वह मत्य थोड़ा-सा आपका होश बढ़े, तो दूसरा सवाल साफ ही हो जाएगा | को पाता है। इसका यह अर्थ हुआ कि जो जीवन को छोड़ता है, वह कि यह जीवन कहीं नहीं ले जा रहा है सिवाय मौत के। यह कहीं | महाजीवन को पाता है। यह बिलकुल विरोधाभासी लगता है, . नहीं जा रहा है सिवाय मौत के। जैसे सभी नदियां सागर में जा रही | | लेकिन ऐसा है। यह विरोधाभास ही जीवन का गहनतम स्वरूप है। हैं, सभी जीवन मौत में जा रहे हैं। आप करके देखें। धन को पकड़ें और आप दरिद्र रह जाएंगे। तब दूसरा बोध स्पष्ट होना चाहिए कि जो जीवन मौत में ले जाता | | कितना ही धन हो, दरिद्र रह जाएंगे। धन को छोड़कर देखें। और है, जो अनिवार्यरूपेण मौत में ले जाता है, अपरिहार्य जिसमें मृत्यु | आप भिखमंगे भी हो जाएं, तो भी सम्राट आपके सामने फीके होंगे। है, मृत्यु से बचने का जिसमें कोई उपाय नहीं, वह आकांक्षा के योग्य | आप शरीर को जोर से पकड़ें। और शरीर से सिर्फ दुख के आप नहीं है, वह एषणा के योग्य नहीं है, वह कामना के योग्य नहीं है। | कुछ भी न पाएंगे। और शरीर से आप तादात्म्य तोड़ दें, शरीर को ये दो बातें अगर गहन होने लगें आपके भीतर, इनकी सघनता | पकड़ना छोड़ दें। और आप अचानक पाएंगे कि शरीर को पकड़ने बढ़ने लगे, तो जीवेषणा की निर्जरा हो जाती है। और जिस दिन | | की वजह से आप सीमा में बंधे थे, अब असीम हो गए। व्यक्ति जीने की आकांक्षा से मुक्त होता है, उसी दिन जीवन का द्वार | । यहां जो छीनने चलता है, उसका छिन जाता है। यहां जो देने चल खुलता है। क्योंकि जब तक हम जीवन की इच्छा से भरे रहते हैं, | पड़ता है, उससे छीनने का कोई उपाय नहीं। यह जो विरोधाभास तब तक हम इस बुरी तरह उलझे रहते हैं जीवन में कि जीवन का है, यह जो जीवन का पैराडाक्स है, यह जो पहेली है, इसको हल द्वार हमारे लिए बंद ही रह जाता है, खुल नहीं पाता। करने की व्यवस्था ही साधना है। 407

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