Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 422
________________ *गीता दर्शन भाग-7 कुछ भी सिद्ध नहीं होता। तब आधार दूसरे हैं; तब आधार का कारण आसुरी संपदा और दैवी संपदा है। वे जो समझते हैं कि मैं ही श्रेष्ठ हूं, मुझसे ऊपर कोई भी नहीं, वे परमात्मा को नहीं मान सकते। फिर वे तर्क खोज लेते हैं। लेकिन वे तर्क पीछे आते हैं, वे तर्क रेशनलाइजेशंस हैं। वह अपनी ही मानी हुई बात को सिद्ध करने का उपाय है। और दूसरे वे लोग हैं, जो जानते हैं कि मैं कैसे केंद्र हो सकता हूं! वह हूं। वे परमात्मा को स्वीकार कर लेते हैं। उनकी स्वीकृति भी तर्क से नहीं आती, उनकी दैवी संपदा से आती है। और इन दोनों के बीच में अधिक लोग हैं, जिन्होंने कुछ तय ही नहीं किया। जिनको हम अधिकतर आस्तिक कहते हैं, वे बीच के लोग हैं; आस्तिक नहीं हैं। उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि परमात्मा है या नहीं। आप में से अधिक लोग उस तीसरे हिस्से में ही हैं। अगर आप कहते हैं कि होगा, तो उसका मतलब यह नहीं कि आप मानते हैं कि ईश्वर है । आप मानते हैं, सोचने योग्य भी नहीं है। लोग कहते हैं; होगा। और क्या हर्जा है, हो तो हो। और कभी वर्ष में एकाध बार अगर मंदिर भी हो आए, तो क्या बनता - बिगड़ता है! और होशियार आदमी दोनों तरफ कदम रखकर चलता है। अगर हो ही, तो मरने के बाद कोई झंझट भी नहीं होगी। न हो, तो हमने कुछ उसके लिए खोया नहीं। हमने संसार अच्छी तरह भोगा । और मानते रहे कि परमात्मा हम दोनों नाव पर सवार हैं। बहुत थोड़े-से लोग हैं, जो मानते हैं कि परमात्मा है। वे वे ही लोग हैं, जो अपने अहंकार को तोड़ते हैं, घमंड को छोड़ते हैं, गर्व को गिराते हैं। बहुत लोग हैं, जो मानते हैं परमात्मा नहीं है। उनका कुल कारण इतना है कि वे खुद अपने साध्य समझे हैं। इसलिए अपने से परम को स्वीकार करना उनके लिए आसान नहीं है। और अधिक लोग हैं, जिनको कोई चिंता ही नहीं है, जिनको कोई प्रयोजन नहीं है, जो उपेक्षा से भरे हैं। इसमें आप कहां हैं? और आप जहां भी होंगे, मजे की बात यह है कि वहीं के लिए आप तर्क खोज लेंगे। फ्रायड ने एक बहुत बड़ी खोज इस सदी में की। और उसने यह खोज की कि लोग तय पहले कर लेते हैं, तर्क बाद में खोजते हैं। आप एक स्त्री के प्रेम में पड़ जाते हैं। कोई आपसे पूछे कि आप प्रेम में क्यों पड़े हैं इसके ? तो आप कहते हैं, वह इतनी सुंदर है। लेकिन फ्रायड कहता है, मामला बिलकुल उलटा है। वह स्त्री दूसरों को सुंदर नहीं दिखाई पड़ती। आप कहते हैं, सुंदर है, इसलिए प्रेम में पड़े। फ्रायड कहता है, आप प्रेम में पड़ गए, इसलिए सुंदर दिखाई पड़ती है। यह बात ज्यादा सही मालूम होती है, क्योंकि और किसी को सुंदर नहीं दिखाई पड़ती। और दूसरों को शायद कुरूप दिखाई पड़ती हो । शायद दूसरे चकित होते हों कि आपका दिमाग खराब हो गया है कि आप इस स्त्री के चक्कर में पड़े हैं! और आप अपने मन में सोचते हैं कि दुनिया भी कैसी मूढ़ है; अज्ञानीजन हैं। इनको इस स्त्री का असली रूप दिखाई ही नहीं पड़ रहा है। प्रेम में हम पहले पड़ते हैं, फिर तर्क हम बाद में इकट्ठा करते हैं। किसी व्यक्ति को आप देखते ही घृणा करने लगते हैं, फिर आप तर्क खोजते हैं, फिर आप कारण खोजते हैं। क्योंकि बिना कारण हमें अड़चन होती है। अगर कोई हमसे पूछे कि क्यों घृणा करते हो, और हम कहें कि बिना कारण करते हैं, तो हम मूढ़ मालूम पड़ेंगे। 'हम कारण खोजते हैं कि यह आदमी मुसलमान है; मुसलमान बुरे होते हैं। यह आदमी हिंदू है; हिंदू भले नहीं होते। कि यह आदमी मांसाहारी है; कि इस आदमी का चरित्र खराब है। आप फिर हजार कारण खोजते हैं। वे कारण आपने पीछे से खोजे हैं। भाव आपका पहले निर्मित हो गया। और भाव अचेतन है और कारण चेतन है। फ्रायड की खोज बड़ी बहुमूल्य है कि प्रत्येक व्यक्ति अंधे की तरह जीता है और सिद्ध करने को कि मैं अंधा नहीं हूं, कारणों की तजवीज करता है । उनको उसने रेशनलाइजेशंस कहा है। फिर उनको वह बुद्धि-युक्त ठहराता है। ईश्वर के साथ भी यही होता है, गुरु के साथ भी यही होता है। मैंने सुना है, एक सूफी फकीर के पास दो युवक गए। वे साधना में उत्सुक थे और सत्य की खोज करना चाहते थे। उस फकीर ने कहा, सत्य और साधना थोड़े दिन बाद; अभी मुझे कुछ और दूसरा काम तुमसे लेना है। लकड़ी चुक गई हैं आश्रम की, तो तुम दोनों जंगल चले जाओ और लकड़ियां इकट्ठी कर लो। और अलग-अलग ढेर लगाना। क्योंकि तुम्हारी लकड़ी का ढेर केवल लकड़ी का ढेर नहीं है, उससे मुझे कुछ और परीक्षा भी करनी है। तो दोनों युवक गए; उन्होंने लकड़ी के दो ढेर लगाए। फिर गुरु | सात दिन बाद आया, तो उसने पहले युवक के लकड़ी के ढेर में आग | लगाने की कोशिश की। सांझ तक परेशान हो गया। आंखों से आंसू बहने लगे। धुआं ही धुआं निकला, आग न लगी। सब लकड़ियां गीली थीं। शिष्य ने क्या कहा गुरु को ? कि मैं चला। जब तुमसे 394

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