Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 423
________________ * जीवन की दिशा * लकड़ी में आग लगाना नहीं आता, तो तुम मुझे क्या बदलोगे! | जानते हैं कि चालाकी, शरारत, कोई धोखाधड़ी, कोई भाई-भतीजा दूसरे युवक की लकड़ियों में गुरु ने आग लगाई; लकड़ियां | वाद, कुछ न कुछ मामला होगा, तभी दूसरा आगे गया, नहीं तो भभककर जल गईं। सूखी लकड़ियां थीं। दूसरा युवक भी पहली हमसे आगे कोई जा कैसे सकता था! अगर दूसरा हमसे पीछे रह घटना देख रहा था। जाए, तो हम समझते हैं, रहेगा ही पीछे; क्योंकि हमसे आगे जाने __ और पहला युवक छोड़कर जा चुका था, और जाकर उसने गांव की कोई योग्यता भी तो होनी चाहिए। में प्रचार करना शुरू कर दिया था कि यह आदमी बिलकुल बेकार हम जो भी होते हैं, जहां भी होते हैं, उसके अनुसार तर्क खोज है। एक तो हमारे सात दिन खराब किए, लकड़ी इकट्ठी करवाई। लेते हैं। हम गए थे सत्य को खोजने! इसमें कोई तुक नहीं है, संगति नहीं | ईश्वर है या नहीं है, यह बड़ा सवाल नहीं। जो व्यक्ति ईश्वर को है। फिर हमने पसीना बहा-बहाकर, खून-पसीना करके लकड़ियां मान सकता है कि है, उसने अपने को झुकाया, यह बड़ी भारी बात इकट्ठी की। और इस आदमी को आग लगाना नहीं आता। तो उसने | है। ईश्वर न भी हो, तो भी जिसने स्वीकार किया कि ईश्वर है और लकड़ियां भी खराब की, धुआं पैदा किया, हमारी तक आंखें खराब | अपने को झुकाया, इसके लिए ईश्वर हो जाएगा। और जो कहता हुईं। और यह आदमी किसी योग्य नहीं है। भूलकर कोई दुबारा | है, ईश्वर नहीं है-चाहे ईश्वर हो ही-इसने अपने को अकड़ाया। इसकी तरफ न जाए। | ईश्वर हो, तो भी इसके लिए नहीं है, तो भी इसके लिए नहीं हो . दूसरा युवक भी यह देख रहा था कि पहला युवक जा चुका है। | सकेगा, तो भी क्योंकि इसके द्वार बंद हैं। दूसरे युवक की लकड़ियां जब भभककर जलने लगी, तो उसने | ___ वह जो आसुरी संपदा का व्यक्ति है, अहंकार, बल, घमंड, कहा कि बस, ठहरो। यह मत समझ लेना कि बड़े अकलमंद हो | कामना और क्रोधादि के परायण हुआ, दूसरों की निंदा करने वाला, तुम। लकड़ियां सूखी थी, इसलिए जल रही हैं, इसमें तुम्हारी कोई | | दूसरों के शरीर में मुझ अंतर्यामी से द्वेष करने वाला है। ऐसे उन द्वेष कुशलता नहीं है। और मैं चला। अगर तुम इसको अपना ज्ञान | | करने वाले पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में समझ रहे हो कि सूखी लकड़ियों को जला दिया तो कोई बहुत बड़ी | | बार-बार आसुरी योनियों में ही गिराता हूं। बात कर ली, तो तुम से अब सीखने को क्या है! यह वचन थोड़ा कठिनाई पैदा करेगा, क्योंकि हमें लगेगा कि दोनों युवक चले गए। गुरु मुस्कुराता हुआ वापस लौट आया। क्यों परमात्मा गिराएगा! होना तो यह चाहिए कि कोई आसुरी वृत्ति आश्रम में लोगों ने उससे पूछा, क्या हुआ? तो उसने कहा, जो होना | में गिर रहा हो, तो परमात्मा उसे रोके, बचाए, दया करे। क्योंकि था ठीक उससे उलटा हुआ। पहला युवक अगर कहता कि | | हम निरंतर प्रार्थना करते हैं कि हे पतितपावन ! हे करुणा के सागर! लकड़ियां गीली हैं, मैं गीला हूं, इसलिए तुम्हें जलाने में इतनी | | दया करो, बचाओ, मैं पापी हूं। और ये कृष्ण कह रहे हैं कि ऐसे कठिनाई हो रही है, तो उसका रास्ता खुल जाता। दूसरा युवक अगर | | नराधम, क्रूरकर्मी को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही कहता कि तुम्हारी कृपा है कि मेरी लकड़ियों में आग लग गई, तो | गिराता हूं! उसका रास्ता खुल जाता। लेकिन दोनों ने रास्ते बंद कर लिए। और ___ जब ईसाई या इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग इस तरह के अब दोनों जाकर प्रचार कर रहे हैं; दोनों ने धारणा बना ली, अब वचन पढ़ते हैं, तो उनको बड़ी कठिनाई होती है। क्योंकि इस्लाम में दोनों उसके लिए तर्क जुटा रहे हैं। मुझसे उन्होंने पूछा नहीं। मेरी | | तो परमात्मा के सभी नाम-रहीम, रहमान, करीम-सब नाम तरफ देखा नहीं। मैं क्या कर रहा था. मेरा क्या प्रयोजन था. इसकी | दया के हैं कि वह दयालु है। यह कैसी दया! और जीसस ने कहा उन्होंने कोई खोज न की। सतह से कुछ बातें लेकर वे जा चुके हैं। | है कि तुम प्रार्थना करो, तो सब तरह की क्षमा संभव है। तुम पुकारो, आप भी, जहां भी आपको दूसरे को श्रेष्ठ मानना पड़ता है, वहां | | तो क्षमा कर दिए जाओगे। बड़ी अड़चन आती है। दूसरे को अपने से नीचा मानना बिलकुल | लेकिन कृष्ण का यह वचन! इसका तो अर्थ यह हुआ, और यही सुगम है। हम हमेशा तैयार ही हैं। हम पहले से माने ही बैठे हैं कि भारतीय प्रज्ञा की खोज है, कि परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है कि तुम दूसरा नीचा है। सिर्फ अवसर की जरूरत है और सिद्ध हो जाएगा। पुकारो और वह क्षमा कर दे। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है कि तुम और अगर कोई दूसरा हमसे आगे भी निकल जाए कभी, तो हम | | उसे फुसला लो, राजी कर लो-प्रशंसा से, खुशामद से, स्तुति 395

Loading...

Page Navigation
1 ... 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450