Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 425
________________ * जीवन की दिशा * है। जिस तरफ आप चलते हैं, उस तरफ आप दौड़ने लगते हैं। कृष्ण कहते हैं, और भी मैं अति नीची योनियों में गिराता हूं। दिशा चुनना बड़ा जरूरी है। सुबह उठते ही प्रेम और प्रार्थना और वे गिराते नहीं। कोई गिराने वाला नहीं है, कोई उठाने वाला नहीं करुणा का भाव हृदय में भर जाए, तो आपके दिन की यात्रा है। आप ही गिरते हैं। नियम न पक्षपात करता है, न चुनाव करता बिलकुल दूसरी होगी। लेकिन सुबह अगर आप चूक गए, तो बड़ी है। नियम निष्पक्ष है। इसलिए जो भी आप हैं, अपनी ऊर्जा, दिशा कठिनाई हो जाती है। और नियम, तीन का जोड़ हैं। ___यही बात पूरे जीवन के संबंध में भी लागू है। अगर बचपन में | | नियम शाश्वत है, सनातन है; आपकी ऊर्जा शाश्वत है, दिशा प्रार्थना और परमात्मा की हो जाए, तो पूरे जीवन की यात्रा | | सनातन है; ये दोनों समानांतर हैं। इन दोनों के बीच में एक और आसान हो जाएगी। इसलिए हम अपने बच्चों को इस मुल्क में | तत्व है, आपका चुनाव, इस ऊर्जा को नियम के अनुकूल बहाना पुराने दिनों में, पहले चरण में गुरुकुल भेज देते थे कि पच्चीस वर्ष या नियम के प्रतिकूल बहाना। तक वे प्रार्थनापूर्ण जीवन व्यतीत करें। क्योंकि उससे गति बनेगी; नदी बह रही है; नाव आपके पास है, वह आपका जीवन है; एक यात्रा का पथ निर्मित होगा। फिर बहुत आसानी से आगे सब | नदी नियम है। अब इस नदी के साथ नाव को बहाना है या नदी के हो जाएगा। | विपरीत नदी से लड़ने में नाव को लगाना है? एक बार बचपन खो गया, गति बिगड़ गई, पैर डांवाडोल हो | जो नदी के विपरीत बहेगा, वह आसुरी चित्त-दशा को उपलब्ध गए, उलटी दिशा पकड़ गई, फिर उसी दिशा में दौड़ शुरू हो जाती होता जाएगा। जो नदी के साथ बह जाएगा—उस साथ बहने का है। जवानी दौड़ का नाम है। बचपन में जो दिशा पकड़ ली, जवानी नाम ही समर्पण है-वह दिव्यता को उपलब्ध हो जाता है। उसी दिशा में दौड़ती चली जाएगी। फिर बुढ़ापा ढलान है। जिस आज इतना ही। दिशा में आप जवानी में दौड़े हैं, उसी दिशा में आप बुढ़ापे में ढलेंगे। क्योंकि शक्ति फिर क्षीण होती चली जाती है। अब तो मनोवैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं कि सात वर्ष की उम्र के बच्चे को हम जो दिशा दे देंगे, सौ में निन्यानबे मौके पर वह उसी दिशा में जीवनभर यात्रा करेगा। बहुत शक्ति की जरूरत है। फिर बाद में दिशा बदलने के लिए। शुरू में दिशा बदलना बिलकुल आसान है। कोमल पौधा है, झुक जाता है। फिर रास्ता पकड़ लेता है, फिर उस झुकाव को तोड़ना बहुत कठिन हो जाता है। . बचपन में जाने का तो अब कोई उपाय नहीं, लेकिन रोज सुबह आप फिर से थोड़ा-सा बचपन उपलब्ध करते हैं। कम से कम दिन को दिशा दें। दिन जुड़ते जाएं। और अनेक दिन जुड़कर जीवन बन जाते हैं। गलत कदम उठाने से रोकें। उठ जाए, तो बीच से वापस लौटा लें। सही कदम उठाने की पूरी ताकत लगाएं; आधा भी जा सकें. तो नजाने से बेहतर है। थोडे ही दिन में आपकी जीवन-ऊर्जा दिशा बदल लेगी। आसुरी दिशा, हम जो कर रहे हैं, क्रोध, मान, अहंकार, उसमें हमें बढ़ाती जाती है। उससे रुकेंगे नहीं, बदलेंगे नहीं, हाथ हटाएंगे नहीं, कुछ छोड़ेंगे नहीं गलत, खाली न होंगे हाथ, तो दैवी संपदा की तरफ बढ़ना बहुत मुश्किल है। और जिस तरफ आप जाते हैं, उस तरफ...। 397

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