Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 354
________________ * गीता दर्शन भाग-7* किया, सारे डायरेक्टर परेशान हुए। उसकी दोनों आंखें दो तरफ जा | | आप उसको गलत भी सिद्ध नहीं कर सकते। उसका खतरा भारी रही थीं, दांत बाहर निकले थे, नाक तिरछी थी, चेहरा भयानक | है। और खतरा तो यही है कि मैं अपने को कुछ समझं और उसमें था, लंगड़ाकर वह आदमी चलता था। अकड़ जाऊं। ___ उन्होंने पूछा, तुम्हें कोई और आदमी नहीं मिला? उसने कहा कि आसुरी वृत्ति का व्यक्ति सदा अपने को कुछ समझता है, यही बिलकुल ठीक है। क्योंकि कभी भी यह भागे, तो इसको समबडी। वह हो या न हो। रावण का घमंड घमंड नहीं है, अभिमान पकड़ने में दिक्कत नहीं होगी। चीफ कैशियर! यह बिलकुल ठीक | है। क्योंकि वह आदमी कीमती है, इसमें कोई शक नहीं है। उस है। इसकी आइडेंटिटी कहीं भी, दुनिया के किसी कोने में भी जाए, जैसा पंडित खोजना मुश्किल है। उसकी अकड़ झठ नहीं है। उसकी इसे हम पकड़ लेंगे। अकड़ में सचाई है। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है! अकड़ में आपकी कोई आइडेंटिटी नहीं है। परमात्मा भी पकड़ना चाहे, तो सचाई है, तो अकड़ और मजबूत हो गई। और अकड़ के कारण ही आपको कहां पकड़े! आदमी परमात्मा से मिलने में असमर्थ हो जाता है। पाखंड का जो सबसे बड़ा उपद्रव है, वह यह है कि आपकी रावण का संघर्ष हो गया राम से। ये तो प्रतीक हैं, क्योंकि अकड़ पहचान खो जाती है, प्रत्यभिज्ञा मुश्किल हो जाती है। और आसुरी का संघर्ष हो ही जाएगा परमात्मा से। जहां भी अकड़ है, वहां आप व्यक्ति का वह पहला लक्षण है। राम से संघर्ष में पड़ जाएंगे। घमंड और अभिमान...। जहां अकड़ गई, वहां आप तरल हो जाते हैं। फिर आपकी यह थोडा सोचकर मश्किल होगी. क्योंकि हम तो घमंड और लहर पिघल जाती है, उस पिघलेपन में आपका सागर से मिलन अभिमान का एक-सा ही उपयोग करते हैं। घमंड और अभिमान हो जाता है। का एक ही अर्थ लिखा है शब्दकोशों में। पर कृष्ण उनका दो तो यह आप मत सोचना कभी कि मेरी अकड़ सही है या गलत उपयोग करते हैं। है। अकड़ गलत है। उस अकड़ के दो नाम हैं। अगर वह गलत हो घमंड उस अभिमान का नाम है, जो वास्तविक नहीं है। और तो घमंड, अगर सही हो तो अभिमान। पर कृष्ण कहते हैं, दोनों ही अभिमान उस घमंड का नाम है, जो वास्तविक है। लेकिन दोनों पाप आसुरी संपदा के लक्षण हैं। हैं और दोनों आसुरी हैं। मतलब यह कि एक आदमी, जो सुंदर नहीं क्रोध और कठोर वाणी...। है और अपने को सुंदर समझता है और अकड़ा रहता है। सुंदर है। संयुक्त हैं, क्योंकि कठोर वाणी क्रोध का ही रूप है। भीतर क्रोध नहीं, सुंदर समझता है; अकड़ा रहता है। यह घमंड है। दूसरा हो, तो आपकी वाणी में एक कठोरता, एक सूखापन प्रवेश हो जाता आदमी सुंदर है, सुंदर समझता है और अकड़ा रहता है। वह | है। भीतर प्रेम हो, तो आपकी वाणी में एक माधुर्य, एक मिठास अभिमान है। पर दोनों ही आसुरी हैं। | फैल जाती है। पहला तो हमें समझ में आ जाता है, क्योंकि वह गलत है ही; । । वाणी आपसे निकलती है और आपके भीतर की खबरें ले आती लेकिन दूसरा हमें समझ में नहीं आता, वह सही होकर भी गलत है। है। वाणी आपके भीतर से आती है. तो आपके भीतर की हवाएं इससे क्या फर्क पड़ता है कि आप सुंदर हैं या नहीं! असली फर्क | और गंध वाणी के साथ बाहर आ जाती हैं। इससे पड़ता है कि आप अपने को सुंदर समझते हैं। जो आदमी कठोर वाणी का केवल इतना ही अर्थ है कि भीतर पथरीला हृदय बुद्धिमान है, वह अगर अकड़े कि मैं बुद्धिमान हूं, तो उतना ही पाप | है; भीतर आप कठोर हैं। मधुर वाणी का इतना ही अर्थ है कि जहां हो रहा है, जितना बुद्ध अकड़े और सोचे कि मैं बुद्धिमान हूं। इससे से हवाएं आ रही हैं, वहां शीतलता है, वहां माधुर्य है। कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि असली बात अकड़ की है। क्रोध लक्षण होगा आसुरी व्यक्ति का; वह हमेशा ऋद्ध है, हर और एक और खतरा है कि वह जो गलत ढंग से, जो है नहीं चीज पर क्रुद्ध है। नाराज होना उसका स्वभाव है। उठेगा, बैठेगा, बुद्धिमान, अपने को बुद्धिमान समझ रहा है, वह तो शायद किसी | तो वह क्रोध से उठ-बैठ रहा है। जहां भी देखेगा, वह क्रोध से देख दिन चेत भी जाए; लेकिन वह जो बुद्धिमान है और अपने को रहा है। वह सिर्फ भूल की तलाश में है कि कहीं भूल मिल जाए, बुद्धिमान समझ रहा है, उसका चेतना बहुत मुश्किल है। क्योंकि कोई बहाना मिल जाए, कोई खूटी मिल जाए, तो अपने क्रोध को 13261

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