Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 392
________________ * गीता दर्शन भाग-7 इसलिए कि आपको खुद हंसी आएगी, मैं भी किन बच्चों के खेल वह तैयार है। भीतर की खोज के लिए सब खो जाए, तो भी वह में उलझा था! तैयार है। वह पूरा दांव बाहर के जगत का भीतर के लिए लगाने के धन बच्चों के खेल से ज्यादा नहीं है। लेकिन चूंकि बूढ़े भी उसे लिए सदा उत्सुक है। उस क्षण की प्रतीक्षा में है, जब वह सब गंवा - खेल रहे हैं, हमें खयाल नहीं आता। खयाल नहीं आता, क्योंकि देगा, स्वयं को बचा लेगा। बूढ़े भी हमारे बच्चों से ज्यादा नहीं हैं। सिर्फ शरीर से बूढ़ा हो जाना | __ जीसस ने कहा है, जो स्वयं को बचाना चाहते हों, उन्हें सब कोई बहुत.मूल्य नहीं रखता। वृत्ति तो बचपन की ही बनी रहती है। गंवाने की तैयारी चाहिए। और जो सब बचाने को उत्सुक हैं, वे बच्चे डाक की टिकटें इकट्ठी कर रहे हैं, तितलियां इकट्ठी कर स्मरण रखें कि सब तो बच जाएगा, लेकिन स्वयं खो जाएंगे। रहे हैं, कंकड़-पत्थर जोड़ रहे हैं। बूढ़े हंसते हैं कि क्या पागलपन जगत में एक सौदा है, या तो आप पदार्थ बचा लें अपने को कर रहे हो! लेकिन डाक की टिकट में और हजार रुपए के नोट में बेचकर। तो आप जो भी कमाते हैं, वह अपने को बेच-बेचकर कोई फर्क है? दोनों ही छापाखाने का खेल है। और दोनों पर लगी कमाते हैं। आत्मा के टुकड़े निकाल-निकालकर बेच देते हैं। तिजोरी मुहर केवल सामाजिक स्वीकृति है। भरती जाती है, आत्मा खाली होती जाती है। एक दिन तिजोरी पास बच्चे टिकटें इकट्ठी कर रहे हैं, या सिगरेट के लेबल इकट्ठे कर में होती है, आप नहीं होते। यही समृद्ध व्यक्ति की दरिद्रता है, यही रहे हैं; बूढ़े नोट इकट्ठे कर रहे हैं! बाकी फर्क नहीं है। यह जो बूढ़ा समृद्ध व्यक्ति की भीतरी दीनता है, भिखमंगापन है। नोट इकट्ठे कर रहा है, यह बस शरीर से बूढ़ा हो गया है; भीतर मैंने सुना है, एक भिखारी एक दिन अमेरिका के एक अरबपति इसका बचकानापन कायम है; भीतर यह अभी भी जुवेनाइल है, एण्डु कार्नेगी के पास गया। सुबह ही सुबह जाकर उसने बड़ा अभी भी बाल-बुद्धि है। शोरगुल मचाया। __ यह जो आसुरी संपदा वाला व्यक्ति है, इसकी बाल-बुद्धि नष्ट तो एण्डू कार्नेगी खुद बाहर आया और उसने कहा कि इतना होती नहीं। यह मरते वक्त भी बाल-बुद्धि का ही मरता है। मरते | शोरगुल मंचाते हो! और भीख मांगनी हो तो वक्त से मांगने वक्त भी उसकी चिंता पदार्थ के लिए होती है। जो समझदार है, वह आओ! अभी सूरज भी नहीं निकला है, अभी मैं सो रहा था। शीघ्र ही पदार्थ की व्यर्थ दौड़ से अपने को मुक्त कर लेता है और उस भिखारी ने कहा, रुकिए; अगर मैं आपके व्यवसाय के परमात्मा की खोज में निकल जाता है। संबंध में कोई सलाह दूं, आपको अच्छा लगेगा? एण्डु कार्नेगी ने पदार्थ की खोज बाहर, परमात्मा की खोज भीतर। पदार्थ की कहा कि बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा। तुम सलाह दे भी क्या सकते खोज दूसरों से छीनकर, परमात्मा की खोज अपने को निखारकर। हो मेरे व्यवसाय के संबंध में! तुम्हारा कोई अनुभव नहीं है। पदार्थ की खोज में दूसरे का शोषण, परमात्मा की खोज में आत्मा उस भिखारी ने कहा, आप भी मत दें सलाह। आपको भी कोई की साधना। | अनभव नहीं है। जब तक हम उत्पात न करें. तब तक कोई देता है? और दो ही खोज हैं। और यह ध्यान रहे कि दोनों खोज कोई | | वक्त से आने पर आपसे मिलना ही मुश्किल था। सेक्रेटरी होता, सोचता हो कि मैं एक साथ साधूं, तो वह गलती में है। इसका यह | पहरेदार होते। अभी बेवक्त आया हूं, तो सीधा आपसे मिलना हो मतलब नहीं है कि आप संसार को छोड़कर भाग जाएं, तो ही | गया। सलाह आप मुझको मत दें, मेरा पुराना धंधा है, और बपौती परमात्मा को खोज सकते हैं। इसका यह भी मतलब नहीं है कि आप है, बाप-दादे भी यही करते रहे हैं। परमात्मा को खोजें, तो आप दीन-दरिद्र, भिखारी ही हो जाएंगे। यह एण्डू कार्नेगी ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैं खुश हुआ कोई मतलब नहीं है। उस आदमी की बात से। मैंने उससे कहा कि तुम क्या चाहते हो? लेकिन जो परमात्मा को खोजता है, पदार्थ पर उसकी पकड़ नहीं उस आदमी ने कहा कि मैं ऐसे मुफ्त कभी किसी से कुछ लेता नहीं। रह जाती। पदार्थ उसके पास भी पड़ा हो, तो भी उसकी पकड़ नहीं | मैं कोई भिखारी नहीं हूं। लेकिन एक काम मैं कर सकता हूं, जो रह जाती। पदार्थ उससे छिन भी जाए, तो वह छाती पीटकर रोता आप नहीं कर सकते। और अगर कुछ दांव पर लगाने की इच्छा नहीं है। पदार्थ हो तो ठीक; पदार्थ न हो तो ठीक। वह उसका लक्ष्य हो, तो बोलिए! नहीं है। और अगर भीतर की खोज के लिए सब छोड़ना पड़े, तो एण्डू कार्नेगी ने लिखा है कि मुझे भी रस लगा कि वह क्या कह 364

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