Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 402
________________ *गीता दर्शन भाग-7 * खल गए। द्वारपाल ने उसे भीतर ले लिया। आप देखते हैं, तो आंखें सजग हैं। मत देखें, अंधेरे में रहे आएं, वह किसान तो खड़ा ही रहा। सोचने लगा मन में कि शायद यहां थोड़े दिन में आंखें अंधी हो जाएंगी। आप सुनते हैं, तो कान तेज भी मेरी कोई चिंता होने वाली नहीं है। राजनीतिज्ञ यहां भी जीत | | हैं। संगीतज्ञ के कान सबसे ज्यादा तेज हो जाते हैं। क्योंकि सुनने जाएगा। और भीतर बैंड-बाजों की आवाज आने लगी। राजनीतिज्ञ | के लिए वह इतना आतुर होता है, एक छोटी से छोटी ध्वनि के का स्वागत हो रहा है। | परिवर्तन को वह पकड़ना चाहता है। चित्रकार की आंखें सतेज हो फिर थोड़ी देर बाद जब बैंड-बाजे बंद हो गए, द्वार खुला; | जाती हैं। दार्शनिक की बुद्धि तीक्ष्ण हो जाती है। किसान को भीतर ले जाया गया। उसने सोचा कि शायद अब __ आप जो करते हैं, वह कुशल हो जाता है। आप जो नहीं करते बेंड-बाजे मेरे लिए भी बनेंगे। वे नहीं बजे! तो उसने द्वारपाल से हैं, उसमें आप अकुशल हो जाते हैं। अगर जन्म से ही हमारी आंखों पछा कि यह पक्षपात यहां भी है? द्वारपाल ने कहा. पक्षपात जरा | | पर पट्टियां बांध दी जाएं, और फिर जब हम जवान हो जाएं तब भी नहीं है। तुम्हारे जैसे लोग तो रोज यहां आते हैं। यह कोई हजारों | पट्टियां खोली जाएं, तो हम सब अंधे ही पट्टियों के बाहर आएंगे। साल के बाद राजनीतिज्ञ स्वर्ग में आया है। इसका विशेष स्वागत | वैज्ञानिक कहते हैं कि तीन साल तक कोई भी इंद्रिय काम न करे. होना ही चाहिए। | तो जड़ हो जाएगी। राजनीति में भला होना मुश्किल है; भला होने वाला हारेगा। | और आसुरी संपदा का तो हम उपयोग कर रहे हैं जन्मों-जन्मों क्योंकि वहां गिरने की प्रतियोगिता है, कौन कितना गहरा गिर | | से, दैवी संपदा का हमने उपयोग नहीं किया जन्मों-जन्मों से, सकता है! इसलिए कठिन मालूम पड़ती है। वहां भूमि सख्त हो गई है। उस धर्म राजनीति से उलटी यात्रा है। वहां ऊपर आकाश में उड़ने की | | पर हमने कभी न हल चलाया, न कुछ खेती की, न बीज डाले। सब प्रतियोगिता है, कौन कितना पृथ्वी के आकर्षण से दूर जा सकता सूख गया है। पठार हो गया है, पत्थर जैसा मालूम होता है। जिस है! वहां कठिनाई पड़नी शुरू हो जाएगी। जितने आप दूर जाएंगे, | | तरफ हम खेती करते रहे हैं, वहां आसानी मालूम होती है, वहां उतनी ही पृथ्वी खींचेगी और संघर्ष बढ़ेगा। लेकिन उसी संघर्ष से | | जमीन तैयार है, वहां जमीन फुसफुसी है, वहां बीज पकड़ना आत्मा का जन्म होता है। उसी तनाव से, उसी प्रतिरोध से, उसी | आसान है। संयम से आपके भीतर व्यक्तित्व निर्मित होता है, इंटीग्रेशन घटता लेकिन कितनी ही कठिन हो दैवी संपदा की फसल, एक बार जो है, आप केंद्रित होते हैं। करना शुरू कर देगा, वह पाएगा कि वह कठिनाई भी कठिन नहीं तो यह ठीक है। दैवी संपदा की फसल इतनी दुर्लभ इसलिए है। है। और एक बार स्वाद आ जाए, तो आपको पता चलेगा कि और इसलिए भी कि हमारे चारों ओर सभी लोग आसुरी संपदा को आसुरी संपदा बड़ी कठिन थी, पुरानी आदत की वजह से सरल पैदा करने में लगे हैं। और आदमी जीता है भीड़ से; भीड़ का मालूम पड़ती थी। कठिनाइयां उसमें बहुत थीं, दुख बहुत था, दुख अनुगमन करता है। भीड़ जहां जाती है, आप भी चल पड़ते हैं। ही दुख था। आपके मां-बाप, आपका परिवार, आपका समाज जो कर रहा है, | जहां फसल सरलता से हो जाती हो, लेकिन फल सदा दुख के बच्चा पैदा होता है, वही बच्चा सीख लेता है; वह भी करना शुरू | | ही हाथ लगते हों, उस सरलता का मूल्य भी क्या है? भला फसल कर देता है। कठिनाई की हो. लेकिन फल आनंद के लगते हों. तो उसे सरल आसुरी संपदा के लिए शिक्षण की काफी सुविधा है। दैवी संपदा | और सहज ही मानना होगा। के लिए शिक्षण की कोई सुविधा नहीं मालूम पड़ती। और जिस । जिन्होंने भी जाना है, उन सबने कहा है कि वह समाधि बड़ी चीज की सुविधा हो उस तरफ आसानी हो जाती है, हम उसमें | | सहज है, बड़ी सरल है; वह अंतिम उपलब्धि कठिन नहीं है। कुशल हो जाते हैं। जिस तरफ कोई सुविधा न हो, उस तरफ हमारे लेकिन हमें तो कठिन लगती है। क्योंकि हमने उस तरफ कोई कदम अंग पंगु हो जाते हैं। नहीं उठाया। हमने उस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। उस दिशा में आप चलते हैं, इसलिए पैरों में गति है, जान है। आप मत चलें, हमने कोई कदम ही नहीं उठाया है, कोई यात्रा ही नहीं की है; हमारे पैर सिकुड़ जाएंगे, पैरालाइज्ड हो जाएंगे, लकवा लग जाएगा। पैर उस तरफ पंगु हैं। 374

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