Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 403
________________ * ऊर्ध्वगमन और अधोगमन तो बैठकर सोचते मत रहें कि वह कठिन है, कुछ करें और उसे सरल बनाएं। करने से चीजें सरल होती हैं। आप कभी पानी में नहीं तैरे हैं, तो बहुत कठिन लगेगा । और आप यह भरोसा ही नहीं कर सकते कि आपको पानी में छोड़ दिया जाए, तो आप बच सकेंगे। लेकिन जो लोग तैरने की कला सिखाते हैं, वे कुछ भी नहीं करते; वे सिर्फ आपको पानी में छोड़ते हैं। पानी में छोड़ते से ही आप हाथ-पैर तड़फड़ाने लगते हैं बचाने के लिए खुद को। तैरना तो आपको आता नहीं, तैरने का तो आपको कोई पता नहीं, अपने को बचाने के लिए हाथ-पैर तड़फड़ाते हैं। यह हाथ-पैर तड़फड़ाना ही तैरने की शुरुआत है। फिर इसको ही थोड़ी व्यवस्था से फेंकने लगेंगे, तैरना हो जाएगा। थोड़ी व्यवस्था ही सीखनी है। अभी थोड़ा अस्तव्यस्त फेंकते हैं, अराजक । फिर सिस्टम हो जाएगी, फिर आप ढंग से फेंकने लगेंगे। एक दफा ढंग से फेंकना आ गया, तो आप पाएंगे कि तैरने से सरल और कुछ भी नहीं हो सकता। अभी तो तैरने में लगेगा कि जान जाने का खतरा है, अगर नहीं जानते तो। · शुरू करें! यह ऊपर की तरफ जो उड़ान है, यह भी एक तैरना है। शुरू में कठिनाई होगी; स्वाभाविक है। जैसे-जैसे अभ्यास गहन होगा, वैसे-वैसे कठिनाई बदलती जाएगी। और एक ऐसा क्षण आंता है, जब समाधि ही एकमात्र सरलता रह जाती है। तब बुरे होने से ज्यादा कठिन कुछ भी नहीं होता । अब हम सूत्र को लें। और उन आसुरी पुरुषों के विचार इस प्रकार के होते हैं, कि मैंने आज यह तो पाया है और इस मनोरथ को प्राप्त होऊंगा तथा मेरे पास यह इतना धन है और फिर भी यह भविष्य में और अधिक होवेगा । आसुरी संपदा के व्यक्ति को और की दौड़ होती है। उसके पास जो भी हो, उसे वह और बढ़ा लेना चाहता है। जो भी उसके पास हो, उतनी मात्रा उसे कभी काफी नहीं मालूम पड़ती। में आसुरी संपदा का व्यक्ति मात्रा में बड़ा उत्सुक होता है, क्वांटिटी उत्सुक होता है। दस रुपए हों, तो हजार हो जाएं; हजार हों, तो दस हजार हो जाएं; दस हजार हों, तो दस करोड़ हो जाएं; उसकी मात्रा बढ़ती जाती है। आंकड़ों में जीता है, कितने बड़े आंकड़ों का फैलाव हो जाए ! और उसकी पकड़ है। उसके पास जो भी है, वह कम है। दूसरी बात, उसके पास जो भी है, उसमें उसे कोई सुख नहीं है। सुख सदा वहां है, जो उसके पास नहीं है। आसुरी संपदा वाले व्यक्ति को सुख सदा आकाश में कहीं दूर है। आसुरी संपदा वाला व्यक्ति आशा में जीता है। जो उसके पास है, उसमें तो कुछ खास रस नहीं है। ठीक है । जो नहीं है, आनंद वहां छिपा है। और जब तक वह उसे न पा ले, तब तक आनंदित | न हो सकेगा। वह दौड़ता रहता है। आज नष्ट करता है कल के लिए। कल को फिर नष्ट करेगा और आगे आने वाले कल लिए। ऐसे पूरे जीवन को वह नष्ट करता जाएगा और जीने को पोस्टपोन करता रहेगा। वह कहेगा कि कल जब सब मेरे पास होगा, तब मैं जीऊंगा। जर्मनी का एक विचारक हुआ। उसके पास बहुत धन था, और अध्ययन की बड़ी रुचि थी, और बड़ी आकांक्षा थी कि जितना ज्यादा से ज्यादा जान सकूं, जान लूं। तो उसने दुनियाभर से जो भी अनूठी से अनूठी पुस्तकें हों, दुर्लभ शास्त्र हों, अनेक भाषाओं के शास्त्र इकट्ठे करने शुरू कर दिए। उसके पास विशाल पुस्तकालय खड़ा हो गया । पचासों भाषाओं की पुस्तकें उसके पास इकट्ठी हो गईं। ऐसा कोई ग्रंथ नहीं था दुनिया में, जो उसने खोजकर इकट्ठा न कर लिया हो। लेकिन यह इकट्ठा करते-करते उसने पाया कि वह नब्बे वर्ष का हो गया है। जब उसे होश आया कि इकट्ठा तो मैंने कर लिया, लेकिन | इसको मैं पढूंगा कब ! और कहते हैं, यह धक्का उस पर इतना भारी पड़ा कि यह धक्का ही उसकी मृत्यु का कारण हुआ। और यह नब्बे वर्ष वह रोज सोच रहा था, कल! कल! और इकट्ठा हो जाए ! और इकट्ठा हो जाए ! पहले इकट्ठा कर लूं, फिर अध्ययन कर लूंगा, फिर ज्ञान को उपलब्ध हो जाऊंगा। आसुरी संपदा वाला व्यक्ति भी ऐसे ही दौड़ता रहता है। धन | इकट्ठा करता है। पद इकट्ठा करता है। उसे सुविधा तो कभी मिल ही नहीं पाती कि वह उसका उपयोग कर ले। आगे की दौड़ उसे पकड़े रहती है। और रोज को वह कुर्बान करता है। भविष्य के लिए, वर्तमान को वह बलि चढ़ाता है भविष्य के लिए। और ध्यान रहे, वर्तमान के अतिरिक्त किसी चीज की कोई सत्ता नहीं है । भविष्य तो बिलकुल सपना है। जो आज को खो रहा है | कल के लिए, वह आज को व्यर्थ ही खो रहा है। और एक बार यह आदत बन गई आज को खोने की, तो मैं सदा आज को खोता रहूंगा। और जब भी समय आता है, वह आज की तरह आता है; कल तो कभी आता नहीं । 375

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