Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 401
________________ * ऊर्ध्वगमन और अधोगमन ** ताकत लगती है। तुम्हें इसका खयाल नहीं आया? | हमने स्वीकार कर लिया। रातभर हमको विश्राम मिल जाता है। उसने कहा, आप समझे नहीं। खयाल मुझे है। जो आदमी भी | सुबह हम फिर खड़े होने में समर्थ हो जाते हैं। मेरा दरवाजा एक बार खोलता है, पांच गैलन पानी मेरी टंकी में खड़े होने का मतलब संघर्ष है। और अगर आदमी उड़ना चाहे, पहंच जाता है। तो मैं नौकर नहीं रखे हए हैं। जो देखने आने वाले तो और बडा संघर्ष है. क्योंकि फिर जमीन से बिलकल उसको हैं दिनभर आते हैं वे खोलते, बंद करते हैं। बस, हर बार अपनी मुक्ति चाहिए। खोलो, बंद करो, तो पांच गैलन पानी दरवाजा ऊपर फेंक रहा है। आसुरी संपदा जमीन की कशिश जैसी है। सुगम है। बुरा होने जब भी कुछ ऊपर भेजना हो, तो थोड़ा श्रम तो होगा, थोड़ा भारी के लिए कोई बड़ी चिंतना नहीं करनी पड़ती। बुरा होने के लिए कोई भी लगेगा, क्योंकि हम नियम जीवन के तोड़ रहे हैं। बहुत बड़ी बुद्धिमत्ता की जरूरत नहीं है। जमीन चीजों को नीचे की तरफ खींचती है; ग्रेविटेशन है। पत्थर | __अपराधियों के अध्ययन किए गए हैं। और मनोवैज्ञानिक कहते को आप ऊपर की तरफ फेंकते हैं, तो आपका हाथ थकता है, चोट हैं कि अपराधियों में नब्बे प्रतिशत जड़बुद्धि होते हैं, ईडिआटिक लगती है। जितनी जोर से ऊंचा फेंकेंगे, उतनी ज्यादा शक्ति होते हैं, उनके पास कोई बुद्धिमत्ता नहीं है। पर बड़ी हैरानी की बात खोएगी। लेकिन पत्थर फिर नीचे चला आता है। जैसे ही आपकी है कि वे बुद्धिहीन जो हैं, वे बुराई करके कई दफा हमें सफल होते भेजी हुई ऊर्जा पत्थर में चुक जाती है, जमीन उसे नीचे खींच लेती भी दिखाई पड़ते हैं। बुद्धिमान हारता दिखाई पड़ जाए, बुद्धिहीन है। नीचे खींचते वक्त किसी ताकत की जरूरत नहीं पड़ती, जमीन सफल होते दिखाई पड़ते हैं। क्योंकि बुद्धिहीन में एक क्षमता तो है, स्वभावतः चीजों को नीचे खींच रही है। वह क्षमता है नीचे गिरने की। अगर नीचे गिरने में ही प्रतियोगिता आसुरी संपदा ग्रेविटेशन है, वह जमीन की कशिश है। हो, तो वह आपसे जीत जाएगा। और हम सभी उसके साथ • छोटा बच्चा एकदम खड़ा नहीं हो सकता मां के पेट से पैदा | प्रतियोगिता कर रहे हैं। इसलिए वह हमें जीतता मालूम पड़ता है। होकर। क्योंकि खड़े होने का मतलब है, ग्रेविटेशन से लड़ना, वह जो जितना नीचे गिर सकता है, उतने जल्दी सफल हो जाएगा। जो जमीन की कशिश है। इसलिए बच्चा पहले जमीन पर लेटकर चाहे धन की दौड़ हो, चाहे राजनीति की दौड़ हो, वह जो बुरा सरकता है। वह जमीन खींच रही है; अभी बच्चा खड़ा होगा, तो | | आदमी है, सफल हो जाता है, क्योंकि वह ज्यादा नीचे गिर सकता फौरन गिरेगा। तो सरकेगा, फिर घुटनों के बल अपने को | | | है। दो राजनीतिज्ञों में वह राजनीतिज्ञ जीत जाएगा, जो ज्यादा नीचे सम्हालेगा। वह जमीन की कशिश से ऊपर उठने की कोशिश कर | | गिर सकता है; उसको कम श्रम पड़ेगा। रहा है। फिर किसी का सहारा लेकर खड़ा होगा। फिर अपने भरोसे ___ मैंने सुना है कि विंसटन चर्चिल एक चुनाव में जिस क्षेत्र से लड़ पर दो कदम चलेगा; लेकिन गिरेगा, घुटने टूटेंगे, चोट लगेगी। | रहे थे, एक बूढ़े आदमी के पास वोट मांगने गए थे। उनके विरोध फिर धीरे-धीरे.धीरे-धीरे...। और पैर उसके समर्थ हैं. वह खडा में कोई खडा था। उस बढे आदमी ने कहा कि मैं सोचंगा। चर्चिल हो सकता है, शरीर उसका पूरा का पूरा तैयार है, लेकिन ग्रेविटेशन ने उस पर दबाव डाला और कहा, कुछ तो कहो; कुछ तो धारणा से संघर्ष करना होगा। फिर एक दिन आएगा कि वह अपने को बना ही लो; अब चुनाव करीब आ रहा है। संतुलित कर लेगा, खड़ा हो जाएगा। तो उस आदमी ने कहा, तुम मानते नहीं तो मैं कहूं कि मैं यही फिर आपको खड़ा होना आसान मालूम पड़ता है। लेकिन अभी प्रार्थना करता हूं भगवान से कि तेरी बड़ी कृपा है कि दो में से एक ही भी जब भी आप थक जाते हैं, तो लेटना ही पड़ता है। क्योंकि खड़े जीत पाएगा। क्योंकि दोनों उपद्रवी हैं, और इतना ही अच्छा है कि होने में, चाहे आपको कितना ही आसान हो गया हो, जमीन दोनों नहीं जीतेंगे, एक ही जीतेगा। कम से कम एक ही बुराई जीतेगी। आपको खींच रही है और थका रही है। इसलिए खड़े-खड़े हम थक मैंने सुना है, एक किसान एक बार स्वर्ग के द्वार पर पहुंचा। उसे जाते हैं। जब भी थक जाते हैं, तब हमें जमीन पर लेटना पड़ता है। बड़ी उदासी हुई वहां, जो हाल उसने देखा। बड़ी देर तक दरवाजा रात सोकर हमें जो सुख मिलता है, वह जमीन की कशिश से | | खटखटाता रहा, किसी ने फिक्र ही न की। तब उसने देखा कि उसके लड़ाई छोड़ देने के कारण! तो हम समतल जमीन पर सो जाते हैं; | पीछे एक राजनीतिज्ञ है, जो उसके बाद में मरा और उसके बाद स्वर्ग फिर छोटे बच्चे हो गए, फिर जमीन से हमारी कोई लड़ाई नहीं है। | के द्वार पर पहुंचा। उसने जाकर दस्तक दी। दस्तक दी नहीं कि द्वार | 373|

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