Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 390
________________ * गीता दर्शन भाग-7* दो के अतिरिक्त तीसरे का हमें कोई स्वर सुनाई नहीं पड़ता।। की बूंदें हाथ लगती हैं, कुछ भी हाथ नहीं लगता। यहां सुख तीसरा एक स्वर है। और वह है वासनाओं की प्रक्रिया का | | बिलकुल नहीं है। जागरूक साक्षी-भाव से दर्शन। भोगी और त्यागी दोनों ही बंध जाते | तो आसुरी संपदा वाला तो किसी तरह असंतोष में भी थोड़ा-सा हैं, सिर्फ साक्षी मुक्त होता है। | संतोष खोज लेता है। दैवी संपदा वाला इसमें पूरी तरह असंतोष यह जो आसुरी संपदा से भरा हुआ व्यक्ति है, वह कभी न पूर्ण | पाता है। और इसी असंतोष के कारण वह किसी नए आयाम में, होने वाली कामनाओं का आसरा लेकर चलता है, इसलिए सदा एक नई दिशा में, एक नए क्षितिज की खोज में निकलता है। दुखी होता है। क्योंकि जो पूरा नहीं होने वाला, उसके साथ चलने | वासनाओं में पाता है कि कुछ नहीं मिला। आभास भी झूठे थे। तो वाला दुख पाएगा ही। और सदा अतृप्ति, सदा असंतोष, और | फिर निर्वासना में, वासना के अतीत, अतिक्रमण में उसकी यात्रा सदा अनुभव करता है, कुछ पाया नहीं; और दौड़ो, और दौड़ो। शुरू होती है। और वह कहीं भी पहुंच जाए, वह जो और की आवाज है, वह दैवी संपदा वाला व्यक्ति पहले तो संसार से पूर्ण असंतुष्ट हो चलती ही रहेगी। जाता है, क्योंकि वही उसकी परमात्मा की खोज का आधार है, वही मोह से मिथ्या सिद्धांतों को ग्रहण करके भ्रष्ट आचरणों से युक्त स्रोत है। लेकिन आसुरी संपदा वाला मानता है कि ठीक है, यह जो हुए संसार में बर्तते हैं। तथा वे मरणपर्यंत रहने वाली अनंत चिंताओं थोड़ा-सा सुख मिल रहा है, बस यही सुख है, इससे ज्यादा जीवन को आश्रय किए हुए और विषय-भोगों के भोगने में तत्पर हुए, में पाने योग्य है भी नहीं, मिल भी नहीं सकता। इतना मात्र ही आनंद है, ऐसा मानने वाले हैं। आपको मैं याद दिलाना चाहूं, अनेक बार मेरे पास लोग आते जो भी छोटा-मोटा उच्छिष्ट मिल जाता है, इस भाग-दौड़ में, हैं, वे कहते हैं, हम संतुष्ट हैं। और वे सोचते हैं कि बड़ी कीमती असंतोष में, दुख में जो थोड़ी-बहुत सुख की आभास जैसी झलक बात मुझसे कह रहे हैं। जो भी भगवान ने दिया है, हम उससे राजी मिल जाती है, बस, आसुरी संपदा वाला मानता है, इतना ही आनंद | | हैं। भगवान ने दिया क्या है उनको? लोग मेरे पास आते हैं, वे है, यही सब कुछ है। कहते हैं, सब ठीक है। पत्नी है, बच्चा है, सब ठीक चल रहा है। ___आप भी सोचें, इतने दिन आप जीए हैं, कम से कम इस जीवन काम भी ठीक है, पैसा भी निकल आता है, रोटी-रोजी चल जाती के दिन का तो आपको स्मरण है ही। और जीवनों में जीए हैं, उसे है; हम संतुष्ट हैं। छोड़ दें। इस सारे जीवन में आपको कोई सुख मिला है? ऐसे व्यक्ति यह सोचकर मुझसे ये बातें कहते हैं कि मैं शायद __ अगर खोजबीन करेंगे, तो बड़ी मुश्किल होगी। जितनी सचेतता | उनकी प्रशंसा करूंगा; कहूंगा कि बड़े धार्मिक व्यक्ति हैं। पर यह से खोजबीन करेंगे, उतना ही खोजना मुश्किल होगा कि कोई सुख | | आसुरी संपदा वाले व्यक्ति का लक्षण है। वह कहता है कि इतना मिला है। कभी-कभी शायद कोई झलक मिली हो, आभास लगा | | ही सुख है बस, इससे ज्यादा तो कुछ है भी नहीं। हो, इंद्रधनुष जैसा कुछ दूर दिखाई पड़ा हो। हाथ में तो पकड़ते से __ दैवी संपदा वाला व्यक्ति तो प्रखर आंखों से जीवन को देखता खो जाता है इंद्रधनुष। बस दूर से थोड़ा दिखाई पड़ा हो, तो उतना | है और पूरी तरह असंतुष्ट हो जाता है। अगर यही जीवन है, तो वह ही सुख है, ऐसा मानकर हम अपने जीवन को ढोते हैं। इसी समय मरने को तैयार है। कुछ सार नहीं है। दैवी संपदा वाला व्यक्ति इतने सस्ते में राजी नहीं होता। __लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति यह देखने में समर्थ होता है कि यह साधारणतः लोग कहते हैं कि दैवी संपदा वाला व्यक्ति संतुष्ट होता | सब व्यर्थ है, उसकी आंखों का रस इस जगत से अलग हो जाता है। लेकिन मैं आपसे कहता हूं, दैवी संपदा वाला व्यक्ति पहले तो | | है, उसकी आंखें मुक्त हो जाती हैं। और वह दूसरे जगत में अपनी बहुत असंतुष्ट होता है। वह इतना असंतुष्ट होता है कि आसुरी | आंखों को फैलाने के लिए समर्थ हो जाता है। ध्यान, जो इस जगत संपदा वाले व्यक्ति भी उसके सामने संतुष्ट मालूम पड़ेंगे। क्योंकि में लिप्त था, हट आता है। और फिर ध्यान को दूसरे जगत में ले आसुरी संपदा वाला कहता है, इतना ही सुख है; इस पर ही राजी जाना आसान हो जाता है। परिपूर्ण असंतुष्ट चेतना ही परमात्मा के होता है। दैवी संपदा वाला कहता है, इसमें सुख कुछ भी नहीं है। परम संतोष को खोज सकती है। यह दूर दिखाई पड़ने वाला इंद्रधनु है। और हाथ में आते ही पानी । इसलिए आशारूप सैकड़ों फांसियों से बंधे हुए और काम-क्रोध 62

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