Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 357
________________ * आसुरी संपदा * यह घोंसला भी हट जाए और अर्जुन खुले आकाश में मुक्त होकर हैं, स्वतंत्र हों; और एक तरफ भीतर से हम चाहते हैं कि परतंत्र उड़ सके...। बनें। क्योंकि परतंत्रता के कुछ सुख हैं; उन सुखों को हम छोड़ नहीं हे अर्जुन, तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी संपदा को प्राप्त हुआ पाते हैं। परतंत्रता की कोई सुरक्षा है। है। और हे अर्जुन इस लोक में भूतों के स्वभाव दो प्रकार के माने कारागृह में जितना आदमी सुरक्षित है, कहीं भी सुरक्षित नहीं है। गए हैं, एक तो देवों के जैसा और दूसरा असुरों के जैसा। उनमें देवों बाहर दंगा भी हो रहा है, बलवा भी हो रहा है, हिंदू-मुसलमान लड़ का स्वभाव ही विस्तारपूर्वक कहा गया है, इसलिए अब असुरों के | रहे हैं, गोली चल रही है, पुलिस है, सरकार है-सब उपद्रव बाहर स्वभाव को भी विस्तारपूर्वक मेरे से सुन। चल रहा है। कारागृह में कोई उपद्रव नहीं है। वहां जो आदमी दो स्वभाव, एक ही चेतना के। एक आदमी बंधन में पड़ा है, हथकड़ी में बैठा है, वहां न कोई दुर्घटना होती है, न मोटर एक्सिडेंट हाथ में जंजीरें हैं, पैर में बेड़ियां हैं। फिर हम इसके बंधन काट देते | होता है, न हवाई जहाज गिरता है, न ट्रेन उलटती है; कुछ नहीं हैं; हाथ की बेड़ियां छूट जाती हैं, पैर की जंजीरें गिर जाती हैं, अब | होता। वहां वह बिलकुल सुरक्षित है। कारागृह की एक सुरक्षा है, यह मुक्त खड़ा है। क्या यह आदमी दूसरा है या वही? क्षणभर जो बाहर संभव नहीं है। पहले बेड़ियां थीं, जंजीरें थीं; अब जंजीरें नहीं, बेड़ियां नहीं। सुरक्षा हम सब चाहते हैं। सुरक्षा के कारण हम कारागृह बनाते क्षणभर पहले एक कदम भी उठाना इसे संभव न था। अब यह | हैं। स्वतंत्रता का खतरा है, क्योंकि खुला जगत जोखम से भरा हजार कदम उठाने के लिए मुक्त है। क्या यह आदमी वही है या है। स्वतंत्रता हम चाहते हैं, लेकिन खतरा उठाने की हमारी हिम्मत दूसरा है? नहीं है। एक अर्थ में यह आदमी वही है, कुछ भी बदला नहीं। क्योंकि एक बहुत बड़े पश्चिम के विचारक इरिक फोम ने एक किताब बेड़ियां इस आदमी का स्वभाव न थीं, इसके ऊपर से पड़ी थीं। हाथ | लिखी है, फिअर आफ फ्रीडम। बड़ी कीमती किताब है। से बड़ियां हट जाने से इसका हाथ तो नहीं बदला। इसकी पैर से । एक भय है स्वतंत्रता का। हम सबके भीतर सब डरते. जंजीरें टूट जाने से इसका व्यक्तित्व नहीं बदला। यह आदमी तो हैं। हम कहते हैं कि स्वतंत्रता हम चाहते हैं. लेकिन हम डरते हैं. वही है। हम कंपते हैं। हम भी अपने घोंसले को वैसे ही पकड़ते हैं, जैसे एक अर्थ में आदमी वही है; दूसरे अर्थ में आदमी वही नहीं है। चील का बच्चा पकड़ता है। उसको लगता है कि मर जाएंगे; इतना क्योंकि जंजीरों के गिर जाने से अब यह मुक्त है। यह चल सकता लंबा खड्डु है, इतना बड़ा आकाश, हम इतने छोटे हैं; अपने पर है, यह दौड़ सकता है, यह अपनी मरजी का मालिक है। अब भरोसा नहीं आता। इसकी दिशा कोई तय न करेगा। अब इसे कोई रोकने वाला नहीं है। इसलिए हम सब तरह की परतंत्रताएं खोजते हैं। परिवार की, अब एक स्वतंत्रता का जन देश की, जाति की, समाज की परतंत्रताएं खोजते हैं। हम किसी पर ये दोनों स्थितियां एक ही आदमी की हैं। ठीक वैसे ही स्वभाव की निर्भर होना चाहते हैं। कोई हमें सहारा दे दे। हम किसी के कंधे पर दो स्थितियां हैं। आसुरी, कृष्ण उसे कह रहे हैं, जो बांधती है; दैवी | | हाथ रख लें। कोई हमारे कंधे पर हाथ रख दे। हो सकता है, हम उसे कह रहे हैं, जो मुक्त करती है। ये दोनों ही एक ही चेतना की | दोनों ही कमजोर हों और एक-दूसरे का सहारा खोज रहे हों। अवस्थाएं हैं। और हम पर निर्भर है कि हम किस अवस्था में रहेंगे। | लेकिन दोनों को भरोसा आ जाता है कि कोई साथ है; हम अकेले यह बात संदा ही समझने में कठिन रही है कि हम अपने ही हाथ नहीं हैं। से बंधन में पड़े हैं। यह कठिन इसलिए रही है कि हम में से कोई | __ स्वतंत्रता को हम अपने ही हाथ से खोते हैं, परतंत्रता को हम भी चाहता नहीं कि बंधन में रहे। हम सब स्वतंत्र होना चाहते हैं।। अपने ही हाथ से खोजते हैं। तो यह बात समझना मन को मुश्किल जाती है कि हमने बंधन अपने | | मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन और उसकी पत्नी में एक दिन निर्मित खुद ही किए हैं। लेकिन थोड़ा समझना जरूरी है। | विवाद चल रहा था। और पत्नी बहुत नाराज हो गई, तो उसने कहा हम चाहते तो स्वतंत्र होना हैं, लेकिन हमने कभी गहराई से | कि तुमसे कहा किसने था कि तुम मुझसे विवाह करो! मैं तुम्हारे खोजा नहीं कि स्वतंत्रता का क्या अर्थ होता है। एक तरफ हम चाहते | पीछे नहीं दौड़ रही थी। नसरुद्दीन ने कहा, वह तो जाहिर है, क्योंकि 329

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